कविता

मरहम के साये में !!!

कड़वे शब्द
कठिन समय में
बस मरहम होते हैं
जख्मो की ज़बान होती
तो वो चीखते शोर मचाते
आक्रमण करते
मरहम के साये में दर्द नम होकर
यूँ पसीज हिचकियाँ ना लेते!!!!

छलनी होती रूह पे
घड़ी दो घड़ी की तसल्ली
वाले शब्दों से
कुछ हुआ है ना कभी होगा
गुनाहों की शक्ल
बदलने के वास्ते
रूहों का लिबास बदलना होगा !!!

सीमा सिंघल 'सदा'

जन्म स्थान :* रीवा (मध्यप्रदेश) *शिक्षा :* एम.ए. (राजनीति शास्त्र) *लेखन : *आकाशवाणी रीवा से प्रसारण तो कभी पत्र-पत्रिकाओ में प्रकाशित होते हुए मेरी कवितायेँ आप तक पहुँचती रहीं..सन 2009 से ब्लॉग जगत में ‘सदा’ के नाम से सक्रिय । *काव्य संग्रह : अर्पिता साझा काव्य संकलन, अनुगूंज, शब्दों के अरण्य में, हमारा शहर, बालार्क . *मेरी कलम : सन्नाटा बोलता है जब शब्द जन्म लेते हैं कुछ शब्द उतरते हैं उंगलियों का सहारा लेकर कागज़ की कश्ती में नन्हें कदमों से 'सदा' के लिए ... ब्लॉग : http://sadalikhna.blogspot.in/ ई-मेल : sssinghals@gmail.com