लघुकथा

काले बादलों से रौशनी

 

सड़क पर बहुत भीड़ थी। बहुत सारी गाड़ियों से चर्र चर्र आवाज़े आ रही थी। लग रहा था कुछ अन्होनी हुई हो। पर क्या! जो हुआ था वो तो चक्रव्यू से घिरा हुआ था। एक लड़की सड़क पर बदहवास सी , फ़टे हुए कपड़ों में , लहूलुहान हालत में थी। उसकी हालत देखकर किसीने कहा ,” देखो तो लग रहा है जैसे यह बालात्कार का शिकार हुई है।”
भीड़ में लोग तरह तरह की बातें कर रहे थे। शोर से माहौल गुंजायमान हो रहा था।
कोई कह रहा था ,” अरे कोई तो पुलिस को फ़ोन करो।”
भीड़ बढ़ती जा रही थी। वो लड़की खुद के बदन को अपने ही हाथों से ढाँकने की कोशिश कर रही थी।
मनचले मज़ा ले रहे थे।
एक व्यक्ति इन सब से अलग भीड़ को चीरता हुआ आगे आ रहा था। उसके हाथ की छड़ी कह रही थी कि वह एक नेत्रहीन था। भीड़ उसको देखकर उसका मज़ाक उड़ा रही थी । लोग हँस रहे थे । पर उसने किसीकी परवाह नहीं की ।
आगे बढ़ता हुआ वह लगभग घटना स्थल तक पहुँच ही गया था।
वहां खड़े किसी व्यक्ति ने पूछा,” क्या वाक़ई यह आदमी अँधा हैं!”
तभी भीड़ से किसी ने कहा ,” नहीं यह नेत्रहीन नहीं देखो इसने उस लड़की को अपनी शर्ट उतार कर दे दी हैं।”
काले बादलों से आने वाली रौशनी से वहां खड़े सभी लोगों की

कल्पना भट्ट

कल्पना भट्ट श्री द्वारकाधीश मन्दिर चौक बाज़ार भोपाल 462001 मो न. 9424473377