कविता

अनदेखी दीवारें

दीवारें कोई दिखती सी
कुछ अनदेखी
कोई रीति रिवाजों की
तो कभी अपने ही मन की
मकानों की दीवारें तो
हिफाज़त करती है
मगर रस्मों की दीवारें तो हिफाज़त के
नाम पर पंख ही काट देती है
ज़िस्म के साथ, मन के भी
मन जब उड़ान भरना चाहे
कभी घुंघरू बन कर
कभी पायल बनकर, रस्में,
पैरों में जंजीर बन जाएं
कुछ दीवारें दिखती तो नही
मगर होती है, जो बांधती है
मन को, ज़िस्म को…
सुमन

सुमन राकेश शाह 'रूहानी'

मेरा जन्मस्थान जिला पाली राजस्थान है। मेरी उम्र 45 वर्ष है। शादी के पश्चात पिछले 25 वर्षों से मैं सूरत गुजरात मे रह रही हुँ । मैंने अजमेर यूनिवर्सिटी से 1993 में m. com किया था ..2012 से यानि पिछले 6 वर्षों कविताओं और रंगों द्वारा अपने मन के विचारों को दूसरों तक पहुचने का प्रयास कर रही हुँ। पता- A29, घनश्याम बंगला, इन्द्रलोक काम्प्लेक्स, पिपलोद, सूरत 395007 मो- 9227935630

2 thoughts on “अनदेखी दीवारें

  • कुमार अरविन्द

    बहुत सुंदर

    • सुमन राकेश शाह 'रूहानी'

      धन्यवाद…🙏😇

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