गीतिका/ग़ज़ल

एक गलत फ़हमी जीवन में मंज़र कैसा दे जाती है

एक गलत फ़हमी जीवन में मंज़र कैसा दे जाती है
पछतावा आँसू तन्हाई जाने क्या क्या दे जाती है

महफिल में भी तन्हा जब महसूस कभी खुद को करता हूँ
आकर याद तुम्हारी मुझको प्यारा लम्हा दे जाती है

उन गलियों में भी तो कोई दीप करो रोशन जिनमें
फैलाती है सुबह कुहासा शाम हताशा दे जाती है

तुम बिन क्या मधुमास पिया जी तुम बिन फगुवा क्या होली क्या
तुम बिन ये घनघोर घटा भी सावन प्यासा दे जाती है

रोज सवेरे बैठ अटारी आस बँधा देता है कागा
लेकिन ढलती शाम हमेशा एक निराशा दे जाती है

बिन बोले ही उसकी आँखों ने जब सारी बाते कह दी
तब समझे की तरुणाई आँखों को भाषा दे जाती है

वो पल भर नज़रों का मिलना शरमा कर फिर झुक झुक जाना
बात गजब है चाह नज़र की दर्द नया सा दे जाती है

सतीश बंसल
१६.०४.२०१८

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.