हास्य व्यंग्य

ये बचाने वाले लोग !

…कुछ लोग “बचाओ-बचाओ” के शोर के साथ मेरी ओर बढ़े आ रहे थे…उत्सुकतावश मैं अपने आगे-पीछे, दाएँ-बाएँ देखने लगता हूँ ..!! लेकिन संकटापन्न की कोई स्थिति दिखाई नहीं देती …फिर भी किसी को बचाने के आपद् धर्म के पालन का लोभ संवरण नहीं कर पाता और मैं भी “बचाओ-बचाओ” के उस शोर के आगे हो लेता हूँ ..! अचानक, मेरे कानों में एक कड़कदार आवाज गूँजती है, कोई मुझे रुकने के लिए कहता है और सकपकाया हुआ मैं रुक जाता हूँ…मेरे रुकते ही दौड़कर कुछ लोग मुझे पकड़ लेते हैं और मुझे पकड़नेवालों में जैसे पकड़ने की होड़ लग जाती हैै…! खैर, मैं उन सब के द्वारा पकड़ लिया जाता हूँ…अब वे चिल्ला रहे थे…ये हमने बचा लिया…बचा लिया…!! इस शोर के बीच मुझे ऐसा प्रतीत हुुआ जैसे मुुझे बचाने की छीना-झपटी मची हो…मैं माजरा समझने की कोशिश करने लगता हूँ…

… मुझे पकड़े हुए कोई कह रहा है, “मैंने बचाया” तो दूसरे की आवाज सुनाई पड़ी “नहीं, पहले मैंने बचाया..” तो कोई कह रहा था.. बचाने वाला तू कौन होता है…बचाया तो मैंने है..” फिर इन्हीं में से कोई बोल रहा था…”बचाने का सर्वाधिकार हमारे पास सुरक्षित है…हम ही किसी को बचा सकते हैं…तू बीच में कौन होता है…!!” मैं देख रहा हूँ… इस बीच कुछ लोग तू-तू मैंँ-मैं पर उतर आते हैं और मुझे छोड़ आपस में ही गुत्थमगुत्था हुए जा रहे थे..! अचानक…मैं चिल्लाने लगता हूँ, “क्या तमाशा है.. किसे बचा रहे हो..? छोड़ो मुझे…” इसके बाद आवाज आती है, “हम तुम्हें ही बचा रहे हैं…कैसे छोड़ दें…फिर तो, तुम बच नहीं पाओगे.!!” किसी ने कहा…”देखना, छोडना मत इसे, नहीं तो बचने से बचकर भाग जाएगा यह..! बड़ी मुश्किल से किसी को बचाने का अवसर हाथ आया है..! अब इसे बचाकर ही दम लेना होगा…!!!”

…..बचाने वाले के हाथों से स्वयं को छुड़ाने का प्रयास करते हुए बड़ी मुश्किल से मैं बोल पाया…”मैं तो आलरेडी बचा हुआ हूँ भाई…! बचे हुए को क्या बचाना..मुझे बचाने-सचाने की कोई जरूरत नहीं..” लेकिन इन लोगों के बीच मेरी आवाज अनसुनी रह जाती है, जबकि इनके बीच फंसा हुआ मैं नुचा जा रहा था…इनके बीच मेरा दम घुटने लगा था…जैसे मेरा प्राण निकलने वाला हो…मैं बेबस भगवान से प्रार्थना करने लगा…हे भगवान..! मुझे इन बचाने वालों से बचा लो…” एक अजीब सी सडबेचैनी भरे कशमकश में आखिर मेरी नींद टूट जाती है ..!!

ओह..! डर से मेरी धुकधुकी अभी तक बढ़ी हुई है.. मैंने अपने चारों ओर देखा…मैं बिस्तर पर ही था.. लेकिन डर का आलम यह था कि मुझे यह तसल्ली होने में कुछ सेकेंड और लगे कि मैं कोई स्वप्न ही देख रहा था और मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है..!! फिर मैंने अपने नथुने फुलाए.. बल्कि नथुने को खींच कर नसिका-छिद्र को चौड़ा किया…अब आराम से साँस लेने लगा था…कुछ गहरी सांसें ली.. असल में एक नासिका-छिद्र से साँस लेने में मुझे थोड़ी प्राब्लम होती है..! अब मैं बिस्तर पर उठ बैठा था…

इस भयावह स्वप्न के पीछे के कारण की मैंने तहकीकात शुरू कर दी… ध्यान आया..! अभी कल ही टीवी चैनलों कुछ ज्यादा ही न्यूज-फ्यूज देख लिया था…लोग-बाग संविधान और लोकतंत्र को बचाने निकल पड़े थे और इसे लेकर चैनलों पर डिबेट में बड़ा चिल्ल-पों मचा था…शायद, इन्हीं समाचारों का मुझ पर कोई प्रभाव रहा होगा…!!

वैसे तो, अपनी संस्कृति में बचाने का कल्चर बहुत पुराना है, लेकिन संविधान के उद्भव के बाद बचाने के लिए एक आइटम और मिल गया..! संविधान को नेताओं ने आपस में मिलजुल कर बनाया था, इसलिए इसके बचाने का दायित्व नेतागण ही निभाते हैं और इन्हें ही इसकी सबसे ज्यादा चिन्ता रहती है! शायद इन्हें पता है कि आम आदमी किस खेत की मूली है..संविधान बचाना इसके वश की बात नहीं..!! और हाँ, ये नेता ही हैं, जो यह भी जानते हैं…अगर संविधान न रहे तो देश में, न रहेगा बाँस और न बजेगी बाँसुरी टाइप से लोकतंत्र भी नहीं रहेगा..! इसीलिए ये बेचारे अपने नेतृत्व-कला से संविधान में फूँक मार-मार लोकतंत्र की सुरीली तान छेड़ते हैं और इसी में रमे हुए सुखार्जन करते हैं…खैर जो भी हो, हमें संविधान और लोकतंत्र बचाने का श्रेय इन नेताओं को देना ही पड़ेगा…

एक बात बता दें…अपने देश की आम जनता किसी को बचाने में रुचि भी नहीं रखती..अभी पिछले दिनों एक समाचार पढ़ा…दिल्ली के पास एक नाले में कार समेत गिरकर सात लोग डूब कर मर गए…उन्हें बचाने के लिए कोई आगे नहीं आया। बल्कि उन्हें डूबते देख उनके गहने और पैसे अलग से लूट लिए गए..काश..! वहाँ कोई नेता होता, तो तय मानिए दौड़कर अकेले ही वह उन सात अभागों को डूबने से बचा लेता..लेकिन उनके भाग में बचना नहीं लिखा था क्योंकि नेता लोग संविधान बचाने से बचें, तब तो आम-आदमी को बचाएँ…!! वैसे भी आम-आदमी लुटेरी और संवेदनहीन होती है..इन्हें बचाने का पाप ये नेता अपने सिर पर लेना भी नहीं चाहेंगे..!!!

लेकिन, यह तो पक्का हो चला है कि सपने में मुझे नेतागण ही बचा रहे होंगे..अन्यथा बचाने का श्रेय लेने के लिए कोई ऐसे ही आपस में गुत्थमगुत्था नहीं होता..! इस स्वप्न से जागने पर, मुझे एक महत्वपूर्ण सीख मिली…वह कि…किसी बचे हुए को ही बचाना चाहिए…और…बचाते-बचाते उस बचने वाले को बेदम कर देना चाहिए..जिससे इस बात के प्रमाणीकरण में आसानी हो कि इसे बचाया गया है..! अन्यथा वह आलरेडी अपने बचे होने के संबंध में कोई राजनीतिक वक्तव्य जारी कर सकता है और तब, बचाव-क्रिया को मात्र एक राजनीतिक स्टंट माना जा सकता है..! और हाँ..आम आदमी को बचाने का कोई लाभ नहीं है…इसीलिए संविधान को ही बचाना चाहिए..अगर इस देश का संविधान बचा रहेगा तो सब बचे रहेंगे…!

*विनय कुमार तिवारी

जन्म 1967, ग्राम धौरहरा, मुंगरा बादशाहपुर, जौनपुर vinayktiwari.blogspot.com.