कविता

प्रदूषित परिवेश और जन्मदर

कल आने वाली वायु
नितान्त शुद्ध होगी
और जिंदगी दीर्घायु होगी
यह कौन जानता है ?
आज तो लेकिन चहुँ ओर
प्रदूषित वायु में ही
साँस को जीना पड़ रहा है !
जीव – जंतु यूँ ही जी रहे हैं
हवा का विष पी रहे हैं
प्रदूषित परिवेश ही उनका जीवन है
एक – एक कण में व्याप्त
कितना उत्पीड़न है !
पेड़ की घनी दीर्घ छाया में
पथिक आकर विश्राम लेता है
पेड़ को छायादार रहने का
मुक्त हृदय से वरदान देता है
कल का पता नहीं , कब
यह पेड़ कट जायेगा
और यहाँ कोई अनजान मकान बस जायेगा !
अभी तो इसी वातावरण में पेड़ों की पंक्तियाँ
पौधों की बहारें रंग लाती हैं
पंछियों की चहचहाटें
रीता मन बहलाती हैं
फुनगियों पर किलोल करते
पक्षियों की बानगी देखते ही बनती है ,
उन्हें नहीं मालूम देश में
लोगों की कितनी ठनती है
और आतंकवादी क्रिया पनपती है !
देश में दहेज रूपी दावानल
अपना भयाक्रांत रूप लेकर आता है
निर्दोष नवविवाहिताओं को क्रूरता से जलाकर
पर्यावरण को दूषित बनाता है l
देश की चिंता अजर – अमर
बढ़ रही है जन्मदर
जीविकोपार्जन का नहीं ठिकाना
कैसे भरेगा उदर
यह समस्या ‘ अमीबा ‘ की भाँति
हर क्षण रही पसर
प्रदूषित कर रही वायुमंडल
सारा मामला यहीं बंडल
‘ हम दो हमारे दो ‘ को कोई नहीं अपनाता है
कोई भी कानून जनसंख्या की वृद्धि
रोक नहीं पाता है
पर्यावरण यहीं दूषित हो जाता है
जो प्रदूषित वायु को
दसों दिशाओं में पहुँचाता है
स्वास्थ्य गिराता , मरघट पहुँचाता हैं !
पशु – पक्षी भी फड़फड़ाते हैं
एक अर्चना को उठे हाथ
आँखें बंद सजल
पूर्ण करने भावना प्रबल
हृदय बोलता है –
यह कौन जानता है , प्रयासरत प्रयत्न
कल शुद्ध हवा बहायेगा
परिवेश से प्रदूषण का
अस्तित्व मिट जायेगा !
— रवि रश्मि ‘ अनुभूति ‘