कविता

कविता – मानवता का अंत

ये क्या हो रहा है आज
मिला हमें कैसा यह ताज
इंसानी पाश का खंडन कर
जाती,धर्म,सम्प्रदाय में विखंडित कर
तरुणियों की शुचिता का दमन किया
हाय रे इंसान! फिर से तूने मानवता का अंत किया।
छीन लो हमसे हमारी पहचान
कर दो सुपुर्देखाक मज़हबी लबादों की शान
हर मात की अश्रु का तूने व्यंग्य किया
हाय रे इंसान! फिर से तूने मानवता का अंत किया।
इंसान का इंसान होना है प्रयाप्त
यह महज़ किवदंती नहीं कर लो आत्मसात
विधि में कथित समता का अभाव दिया
हाय रे इंसान! फिर से तूने मानवता का अंत किया।

अविनाश पाण्डेय

रचनाकार - अविनाश पाण्डेय , पिता- श्री कृष्ण मुरारी पांडेय , ग्राम - बड़हिया , जिला - लखीसराय बिहार (पटना) शिक्षा - बी.ए , मुख्य विषय - अंग्रज़ी , Today24.in news portal and sahitya.com में रचना प्रकाशित होने का श्रेय। मो.- 7765037454 , ईमेल- pandeyjinasa99@gmail.com

One thought on “कविता – मानवता का अंत

  • कुमार अरविन्द

    सुंदर

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