कविता

राम और रहीम

दहकती धरती को देखकर,
लाशों के ढेर की गिनती करते
रो रहे है,
राम और रहीम

कल अचानक बवाल उठा, बिच चौराहे पर लड़ पड़े दो इंसान,
भीड़ की संख्या बढ़ने लगी
जनता दो धड़ो में बंटने लगी।

अरे! जो लड़ रहे है ,वे इंसान नही है,
कुछ हिन्दू कुछ मुस्लमान है।
आक्रोश की अग्नि भड़क उठी,
मजहबी पंछियों की आहट तेज हुई।
छिड़क डाला जहर, धार्मिक नारों का,
पल भर में धरा, लाल रक्त से
रंग गई।
प्यास लहू की मिट गई,
रक्त से रक्त मिलकर पूछ रहा था
“तू हिन्दू है या मुस्लमान”?

दंगो का जूनून गुजर गया,
किसी बाप का बेटा
किसी बेगम का सुहाग उत्तर गया।
देखकर तबाही इंसानियत की
राम और रहीम रोते जा रहे है,
बस! रोते जा रहे है।

— पवन “अनाम”

पवन अनाम

नाम: पवन कुमार सिहाग (पवन अनाम) व्यवसाय: अध्यनरत (बी ए प्रथम वर्ष) जन्मदिनांक: 3 जुलाई 1999 शौक: कविता ,कहानी लेखन ,हिंदी एवं राजस्थानी राजस्थानी कहानी 'हिण कुण है' एक मात्र प्रकाशित लघुकथा ! शागिर्द हूँ! व्हाट्सएप्प नंबर 9549236320

One thought on “राम और रहीम

  • कुमार अरविन्द

    शाबाश

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