कविता

मजदूर

मैं मजदूर हूँ मुझे जिना है इसके भार पर
नहीं दुखी हूँ बस चलता हूँ अपनी राह पर।

दिन भर दौड़ता हूँ बनाये मानव हाट पर
भोजन के राह दौड़ते अपनों के ही आस पर।

जिंदगी में काम करता हूँ अपने ही नाज पर
दो वक्त की रोटी मिल जाये इसके ही आस पर।

शोषण की चक्की में हम निकलते है पीस कर
मुक्त होगा जीवन शोषण चक्की में ही घिस कर।

मै, प्रयोग ही किया जाता हूँ सत्ता के गलि यारों में
सत्ता तो  बदलती रहती है अपने ही यारो में।

अच्छे दिन आयेंगे रहता इसी सथ पथ पर
दिन तो गुजर जाता है भविष्य के ही रथ पर।

रचनाकाल-३०/०४/२०१८

रचनाकार– रंजन कुमार प्रसाद (माध्यमिक शिक्षक)

रंजन कुमार प्रसाद

माध्यमिक शिक्षक उत्क्रमित हाइस्कूल तोरनी,करगहर,रोहतास, बिहार, पता- ग्राम-सकरी,पोस्ट-कुदरा, जिला-कैमूर(भभुआ) बिहार, दूरभाष-9931580972 , ranjangupta9931@gmail.com