बाल कविताशिशुगीत

कीटों की कहानी: उनकी ज़ुबानी

मलेरिया का वाहक हूं,
आपके खून का ग्राहक हूं,
ज्वर फैलाना मेरा काम,
मच्छरमल है मेरा नाम,
सबको ही है मेरा सलाम.

जहां कहीं हो कूड़ा-कचरा,
निर्भय आती-जाती हूं,
मैं मक्खी हूं रोगों की जड़,
पेचिश-हैजा लाती हूं,
अच्छा अब मैं जाती हूं.

सुनो-सुनो जो कहती हूं,
बालों में मैं रहती हूं,
सिर पर चढ़ना मेरा काम,
जूं देवी है मेरा का नाम,
सबको मेरा राम-राम.

छः पैरों से चलता हूं,
चारपाई में रहता हूं,
खून चूसना मेरा काम,
मिस्टर खटमल मेरा नाम,
यहां नहीं अब मेरा काम.

रंगबिरंगी होती हूं,
फूलों का रस लेती हूं,
कहते सभी सयानी हूं,
प्यारी तितली रानी हूं,
फूलों पर अब जाती हूं.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “कीटों की कहानी: उनकी ज़ुबानी

  • लीला तिवानी

    मैं चूहा हूं, कम मत समझो,
    काटना-कुतरना मेरा काम,
    कागज़ काटूं, कुतरूं फाइलें,
    नाम हुआ चाहे हुआ बदनाम.

Comments are closed.