गीतिका/ग़ज़ल

उलझी एक कहानी भी है

हमको पीर छिपानी भी है.
अपनी बात बतानी भी है.
ख़ुश भी हूँ उसके आने से,
थोड़ी सी हैरानी भी है.
जो भी मैंने बोला उसका,
कोई और मआनी भी है.
होंठों पर मुस्कान लिए हूँ,
पर आँखों में पानी भी है.
दिल की बात ज़ुबाँ से कह दी,
अब करके दिखलानी भी है.
सबको भाती मेरी ग़ज़लें,
लेकिन “वो” दीवानी भी है.
मेरे बारे में वो बोले-
उसका कोई सानी भी है.
हर सूरत जानी-पहचानी,
पर कितनी अनजानी भी है.
इक तस्वीर हटानी है तो,
इक तस्वीर लगानी भी है.
एक सरस कविता है जीवन,
उलझी एक कहानी भी है.
डॉ. कमलेश द्विवेदी
मो.9415474674

One thought on “उलझी एक कहानी भी है

  • कुमार अरविन्द

    जय हो

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