नहीं तकदीर में जो मेरे क्यों फिर जुस्तजू करते
गजल : कुमार अरविन्द
नहीं तकदीर में जो मेरे क्यों फिर जुस्तजू करते |
मेरी किस्मत में क्या है वो पता जाकर के यूं करते |
रखी इज्जत हमेशा है जिसने अपना समझकर तो |
उसी इंसान को ऐसे नहीं बे – आबरू करते |
हमें मिलने का मौका तो नही मिल पायेगा जानम |
कभी ख्वाबों में आ जाओ तो जी भर गुफ़्तगू करते |
ज़हर का घूंट पीकर भी बचे यदि तो बचा लेना |
किसी भी हाल में साहब नहीं ‘रिश्तों का खूं करते |
ये दिल का ‘आइना है जो सदा सच ही दिखाता है |
मुखौटे को अलग रखकर जो इसको रूबरू करते |
मुहब्बत रास आएगी हँसेगी मुस्कुराएगी |
बशर्ते सच में शिद्दत से मुहब्बत तो शुरू करते |
तमन्नाएँ मचलती हैं ‘ ये मचलेंगी यही सच है |
मगर काबू में रख इनको बहुत मत सुर्खरू करते |
नहीं कोई करेगा तो , हमें क्या है लेना – देना |
भली जो बात लगती हो उसे खुद ही शुरू करते |
सभी आदत इरादा आरजू ‘ अरविन्द तुम कर लो |
जो तुम हो सोंचते वो सब गलत है हूबहू करते |