गीतिका/ग़ज़ल

नहीं तकदीर में जो मेरे क्यों फिर जुस्तजू करते

गजल : कुमार अरविन्द

नहीं तकदीर में जो मेरे क्यों फिर जुस्तजू करते |
मेरी किस्मत में क्या है वो पता जाकर के यूं करते |

रखी इज्जत हमेशा है जिसने अपना समझकर तो |
उसी इंसान को ऐसे नहीं बे – आबरू करते |

हमें मिलने का मौका तो नही मिल पायेगा जानम |
कभी ख्वाबों में आ जाओ तो जी भर गुफ़्तगू करते |

ज़हर का घूंट पीकर भी बचे यदि तो बचा लेना |
किसी भी हाल में साहब नहीं ‘रिश्तों का खूं करते |

ये दिल का ‘आइना है जो सदा सच ही दिखाता है |
मुखौटे को अलग रखकर जो इसको रूबरू करते |

मुहब्बत रास आएगी हँसेगी मुस्कुराएगी |
बशर्ते सच में शिद्दत से मुहब्बत तो शुरू करते |

तमन्नाएँ मचलती हैं ‘ ये मचलेंगी यही सच है |
मगर काबू में रख इनको बहुत मत सुर्खरू करते |

नहीं कोई करेगा तो , हमें क्या है लेना – देना |
भली जो बात लगती हो उसे खुद ही शुरू करते |

सभी आदत इरादा आरजू ‘ अरविन्द तुम कर लो |
जो तुम हो सोंचते वो सब गलत है हूबहू करते |

कुमार अरविन्द

नाम - कुमार अरविन्द ( अरविन्द शुक्ला ) पिता का नाम - राम बहादुर शुक्ला पता - ग्राम - बंजरिया , पोस्ट विशुनपुर संगम , इंटियाथोक गोंडा यूपी ( 271202 ) शिक्षा - वनस्पति शास्त्र में परास्नातक लेखन शैली - गजल मोब. - 9415604118 दैनिक हमारा मेट्रो , वर्तमान अंकुर , राष्ट्रीय सहारा , दैनिक भास्कर अमर उजाला , अमर उजाला काव्य और बेव पत्रिकाओं जैसे कागज़ दिल , सावन , आदि में प्रकाशित