फुटपाथों की पीर
कलम ! दर्द से रुक मत जाना ,
फुटपाथों की पीर लिखूँगा ।
देख अन्नदाता के चेहरे !
आखिर क्यों है इतने उतरे ?
इनकी पीड़ा कहाँ सुनेंगे ,
लोकतंत्र के शासक बहरे ?
हर मजबूरी मे जो बरसा ,
वो नैनों का नीर लिखूँगा ।
कलम ! दर्द से………….
पेट बड़े हैं ,कम मजदूरी ।
हिस्से में केवल मजबूरी ।
ख्वाब सजाना बेइमानी है,
तन पर चीर नही जब पूरी ।
इन भूखे, नंगे लोगों की ,
अगर लिख सका ,चीर लिखूँगा।
कलम! दर्द ………..
जनसेवक अब मालदार है।
जनता के सर पर उधार है।
गधे पंजीरी काट रहे हैं ,
यह आखिर कैसी बहार है।
लक्ष्य करे जो भ्रष्ट नीति को ,
ऐसा कोई तीर लिखूँगा ।
कलम! दर्द…………
कुत्ते दुग्धपान करते हैं ।
एसी,कूलर में रहते हैं।
भूखे सो जाते हैं मानव,
बिना दवाई के मरते हैं ।
इंसानों की फूटी किस्मत,
कुत्तों की तकदीर लिखूँगा।
कलम!दर्द……………….
————–©डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी