बहुत तड़पाते हैं मुझको ये दुनिया के उजाले अब ।
भँवर में डोलती कश्ती कोई कैसे संभाले अब ।
ये दिल करता है कर दूं खुद को तूफ़ां के हवाले अब ।
बहुत ही स्याह उसकी हिज़्र की हर रात लगती है,
चराग इक याद का उसकी ऐ मेरे दिल जला ले अब ।
अजब तासीर है कोई जो पल भर कम नहीं होती,
भला इस हाल से कैसे कोई खुद को निकाले अब ।
छुपाकर खुद को परदे में मेरा महबूब बैठा है,
करूँ मै क्या जतन आखिर जो वो परदा हटा ले अब ।
सुकूँ मिलता है ‘नीरज’ अब तो आंखें बंद रखने में,
बहुत तड़पाते हैं मुझको ये दुनिया के उजाले अब ।
नीरज निश्चल