मेरे अल्फ़ाज़
आज मेरे अल्फ़ाज़ मुझसे खफा हो गए ।
खिड़की के रास्ते दफा हो गए ।
कितने मासूम लगते मुंह के अंदर ।
बाहर निकलते ही हवा हो गए ।
हाय मेरे अल्फ़ाज़ मुझको दगा दे गए ।
कोई पकड़ो इन ना मुरादों को ।
इन के ना पाक इरादे हमें खफा कर गऐ।
इश्क पर परवान चढ़े थे कभी ।
आज इनके इरादे कुछ अच्छे नहीं ।
न जाने तुम्हें क्यों पिया कह गए ।
हम तो शर्म से निगाहें झुकाए खड़े रह गए ।
तुम इनकी शरारत पे मुस्कुराते रहे ।
आज मेरे अल्फ़ाज मुझसे खफा हो गए ।
खिड़की के रास्ते दफा हो गए।