साँप
(अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प महोदय द्वारा सुनाई गई अंग्रेज़ी कविता का भावानुवाद)
प्रात: घर से कार्यालय जाने को निकली महिला एक।
जल्दी जल्दी डग भरती थी काम पड़े थे वहाँ अनेक॥
देखा उसने झील किनारे साँप एक था पड़ा हुआ।
काँप रहा था जाड़े से वह जैसे आधा मरा हुआ॥
“हाय बेचारा” उसने सोचा, “इसको घर ले जाऊँ मैं।
गर्मी भोजन देकर इसकी निश्चित जान बचाऊँ मैं॥”
“ले चलो मुझे, हे दयालु देवी!” बोला वह कातर स्वर से।
द्रवित हो गयी और उठाया झट उसको कोमल कर से॥
रखा साफ सूखे कपडे में और उसे घर ले आई।
दूध और मधु का भोजन दे उसको गर्मी पहुँचाई॥
गयी काम पर तब वह अपने, शाम को फिर वापस आकर।
देखा उसने मरियल प्राणी, स्वस्थ हुआ जीवन पाकर॥
फेरा हाथ बदन पर उसके और प्यार से चिपकाया।
“सही समय पर मदद मिली तो तुमने है जीवन पाया॥”
यह कह उसने बडे प्यार से जैसे ही फिर चिपटाया।
वैसे ही उस दुष्ट जीव ने उस महिला को डँस खाया॥
चिल्लाकर बोली वह “हाय, यह क्या कर डाला तुमने?
मैंने तुम्हें बचाया उसका यह प्रतिदान दिया तुमने!
झेल तुम्हारा जहर नहीं मैं अब बिल्कुल बच पाऊँगी।
लेकर यह कड़वा अनुभव मैं मौत के मुँह में जाऊँगी॥”
“चुप रह बेवकूफ औरत!” मक्कार सर्प चिल्लाया यों।
“मैं साँप हूँ यह जानकर भी तुमने मुझे बचाया क्यों?
डँसना मेरा मूल स्वभाव है उसे नहीं मैं तज सकता।
मुझको देकर शरण बताओ मानव कैसे बच सकता?”
भावानुवाद – विजय कुमार सिंघल
वैशाख कृ ५, सं २०७५ वि (५ मई, २०१८)