ग़ज़ल
सटीक बात की, आक्षेप बाँधनू क्या है
ये बातचीत में खरसान बैर बू क्या है?
नया ज़माना नया है तमाम पैराहन
अगर पहन लिया वो वस्त्र, फ़ालतू क्या है |
हसीन मानता हूँ मैं उसे, नहीं शोले
नजाकतें जहाँ है इश्क, तुन्दखू क्या है |
किया करार बहुत आम से चुनावों में
वजीर बनके कही रहबरी, कि तू क्या है ?
हो वुध्दिमान मिला राज, अब करो कुछ भी
उलट पलट करो खुद आप, गुफ्तगू क्या है |
ये कर्ण फूल, गले हार, हाथ में कंगन
पहन लिया सभी कुछ, और आरजू क्या है ?
जला जो आग से कश्मीर, भष्म में है क्या
वो खंडहर में बची लाश की जुस्तजू क्या है ?
सभी को है पता मंत्री बना अभी “काली”
नहीं तो देश में उसकी भी आबरू क्या है |
शब्दार्थ :-
बाँधनू – मनगढ़ंत , खरसान –तेज , बू –गंध
तुन्दखू-गुस्सैल;तेज मिज़ाज़, जुस्तजू –खोज, गंवेषणा
मौलिक व अप्रकाशित
— कालीपद ‘प्रसाद’
धन्यवाद आ सिंघल साहब , मैं अभी ज्यादा से ज्यादा हिंदी शब्द का प्रयोग करने लगा हूँ, आशा है आपको पसंद आयगा |
आपकी ग़ज़लों में कठिन उर्दू शब्दों की भरमार रहती है. कृपया यहाँ सरल शब्दों वाली गज़लें ही लगायें. धन्यवाद.