कविता

इंसान बंटता चला गया

धरती अम्बर एक सी लहू भी सबका एक का सा
फिर भी इंसान क्यों बंटता चला गया
सरहदे बंट गयी दिलो पे लकीरे खिच गयी
फिर भी इंसान बंटता चला गया
धर्म बंट गया जाति बात गयी
खून सबका लाल ही रहा
सब एक ही है धरती के लाल है
पर सबके दिल में अंगार है
क्यों नफरत बढ़ रही है दिलो में
सब इससे परेशान है
इंसान क्या करे बेचारा
वो भी परेशान है
कितना बाँटोगे दिलो को नफरत के जंजीर से
क्यों नहीं घोलते सबके दिलो में
प्यार की जंजीर
उस प्यार से रंग जाये
सबके दिलो में घर कर जाये
राम अल्लाह की जमी को
मुस्कराहट से भर जाये
न बाँटो तुम इंसान को
न बाँटो तुम भगवान को
गरिमा
 

गरिमा लखनवी

दयानंद कन्या इंटर कालेज महानगर लखनऊ में कंप्यूटर शिक्षक शौक कवितायेँ और लेख लिखना मोबाइल नो. 9889989384