गीतिका/ग़ज़ल

अदाएँ जगा कर गयीं तिश्नगी को

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वो जब भी चला छोड़ने मैकशी को ।
अदाएं जगा कर गईं तिश्नगी को ।।

बयाँ हो गयी आज उनकी कहानी ।
छुपाते रहे जो यहां दुश्मनी को ।।

अमीरों की महफ़िल में सजधज के जाना ।
वो देते नहीं अहमियत सादगी को ।।

खुदा की नज़र है हमारे करम पर ।
भरोसा कहाँ रह गया आदमी को।।

पकड़ कर उँगलियों को चलना था सीखा।
दिखाते हैं जो रास्ता अब हमी को ।

मुहब्बत हुई इस तरह आप से क्यूँ ।
अभी तक न हम जोड़ पाये कड़ी को ।।

मेरे कत्ल का कर गए फ़तवा जारी ।
जो कल दे रहे थे दुआ जिंदगी को ।।

अदब काफिया बह्र सब हैं नदारद ।
जनाजे पे वो रख रहे शायरी को ।।

  1. मुहब्बत को जिसने तबज्जो नहीं दी ।
    वो तरसा बहुत उम्र भर इक
    ख़ुशी को ।

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक naveentripathi35@gmail.com