लघुकथा

इंसान

शहर में अचानक दंगे भड़क उठे । दो गुटों में मारपीट के बाद हालात बेकाबू होते देख प्रशासन ने कर्फ्यू लगा दिया । समीर अपने बेटे के लिए चिंतित था जो शहर के दूसरे छोर पर अपने स्कूल में फंसा हुुुआ था ।   कई बार बेल जाने के बाद भी किसी ने फोन नहीं उठाया तो समीर ने कयास लगाया शायद स्कूल में कोई न हो ।
घर के सामने तैनात एक पुलिस अधिकारी से उसे ज्ञात हुआ  ” शहर के दूसरे छोर पर बच्चों से भरी हुई एक स्कूल बस को दंगाइयों ने आग लगाने का प्रयास किया । बस चालक को अपने कब्जे में लेकर दंगाई बस को आग के हवाले करने ही वाले थे कि तभी अचानक बस चल पड़ी । किसी ने बस को दंगाइयों के बीच से निकालकर शहर से बाहर की तरफ मोड़ दिया था । उसे रोकने की कोशिश में दो दंगाई भी बस के नीचे आकर कुचले गए । फिर भी वह अज्ञात शख्स बस को शहर से बाहर की तरफ भगा ले गया । “
खबर सुनकर चिंता में डूबा समीर अभी कुछ सोच भी नहीं पाया था कि तभी उसके फोन की घंटी बज उठी । फोन पर उसका आठ वर्षीय बेटा रोहन बोल रहा था ,” पापा ! आप चिंता नहीं करना ! हम सब बच्चे यहां बड़े अच्छे से हैं । मेरे साथ चीनू , मोनू , पाखी ,ऋषि ,नेहा ,काजल ,प्रथम ,और और भी ढेर सारे बच्चे हैं । ये अंकल बहुत अच्छे हैं । बदमाश हमारी बस को जला ही देते अगर अंकल हमारी बस चलाकर वहां से भाग नहीं गए होते । हम लोग इनके फार्म हाउस में हैं जो शहर के बाहर बना हुआ है । आप पुलिस को लेकर आइये । अंकल आपको पता बता देंगे । फोन रखता हूँ । “
समीर तुरंत ही अपने घर के सामने तैनात पुलिस अधिकारी के पास गया और  उसे पूरी बात बताते हुए बच्चों को वहां से सकुशल लाने का निवेदन किया ! उस अधिकारी ने समीर से फोन लेकर उसी नंबर पर फोन लगाया जिस नंबर से उसे फोन आया था । फोन किसी व्यक्ति ने उठाया और उसे पता बताते हुए आकर बच्चों को हिफाजत से ले जाने का आग्रह किया। अधिकारी ने पूछा , ” अरे भाई ! अपना नाम तो बताओ ! “
जवाब आया ,” नाम में क्या रखा है साहब ? क्या मेरी इंसान के तौर पर पहचान काफी नहीं ? बस ये समझ लो कि मैं एक इंसान हूँ और इंसानियत ही मेरा मजहब है । “

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

One thought on “इंसान

  • लीला तिवानी

    प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, बहुत सुंदर जवाब-
    ” नाम में क्या रखा है साहब ? क्या मेरी इंसान के तौर पर पहचान काफी नहीं ? बस ये समझ लो कि मैं एक इंसान हूँ और इंसानियत ही मेरा मजहब है । “
    आज ऐसे ही इंसानों की सख्त जरूरत है. अति सुंदर कथा. अत्यंत सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.

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