कविता

ठीक कहते हो तुम

ठीक कहते हो तुम
मैं ही तुम्हारे पीछे
खिची चली आयी थी
तुम छोड़ तो आये थे मुझे
लेकिन मैं तुम्हारे
पैरो के निशान के सहारे
दौड़ी चली आयी
और आती भी क्यो नही
सालो साथ गुजारे है
हर मौसम का लुत्फ उठायें हैं
फिर आज अचानक
दूर कैसे होते
साथ कैसे छोड़ते
जानती हूँ तुम नराज हो
ये कोई नयी बात नही
हमेशा होते हो
लेकिन मनाती तो मैं ही हूँ
तो अब मान जाओ
थूक दो गुस्सा
लगा लो गले सें
आज फिर खड़ी हूँ तुम्हारे सामने
कही नही जाऊँगी तुम्हारे बिना
हमेशा साथ रहूँगी
ये तो तुम भी जानते हो
मैं भी जीद्दी हूँ बिल्कुल तुम्हारे तरह
जैसे तुम कभी
नराज होने से बाज नही आते
और मैं मनाने से हार नही मानती।
निवेदिता चतुर्वेदी’निव्या’

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४