कविता

कविता

जब भी सोचता हूँ तुम्हें
मेरे ख़यालों से उठने लगती है
वही जानी-पहचानी गंध
जो साँसों से होते रोम-रोम से गुजरते
समा गई थी रूह में मेरी
जब तुम मिली थीं मुझे पहली बार ……

तुम मेरे इतने पास थीं
कि तुम्हारी साँसों की सरसराहट
और धड़कनों की धमक के लय से
सुन पा रहा था मैं जीवन संगीत
आज भी जब दुनिया के
भीड़ भरे गलियारों में
दौड़ते-भागते थक कर
मूँदता हूँ अपनी आँखें
वही जीवन संगीत बजने लगता है कानों में मेरे
और मैं भर उठता हूँ ज़िंदगी से….

मेरे सवाल पर जब पहली बार
गर्दन को झुकाए बोली थीं तुम
हजारों मन्दिर की घंटियां अचानक ही बज उठीं हो जैसे
आज भी मन्दिर की घंटियों में तुम गूँजती हो
और मेरी हर दुआ मुकम्मल हो जाती है…..

अपनी जुल्फों में बाँधे फागुन की बहार को
लाई थी तुम उपहार में
और तबसे मेरा हर मौसम वासंती हो गया है
जिस हथेली में थामा था तुम्हारा हाथ
उससे छूता हूँ जहाँ-जहाँ
महसूस होती है तुम्हारी सिहरन

सुनो! इन दिनों मेरे शहर के मौसम का मिजाज़
बड़ा उमस भरा हो गया है
और तुमसे मीलों की दूरी
बहुत जलाने लगी है
एक बार फिर बरस जाओ न!
प्रीत की बदली बनकर
चातक की तरह एक बूँद ही सही
पी लूँ तुम्हें होठों से
ताकि शीतल हो जाए
तुम्हारे विरह में जलता मन

और तुम्हारे इंतज़ार की राह लहलहा उठे स्मृतियों के उपवन से….

आभार सहित :- भरत मल्होत्रा

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- rajivmalhotra73@gmail.com