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अमेरिका की मंजू मिश्रा के सम्मान में कवि गोष्ठी

अमेरिका की साहित्यिक-सामाजिक संस्था उत्तर प्रदेश मंडल ऑफ अमेरिका (उपमा) की बोर्ड मेंबर, कैलीफोर्निया की प्रसिद्ध हिंदी कवयित्री श्रीमती मंजू मिश्रा का अपनी संस्था से जुड़े एक कार्यक्रम में कानपुर आगमन हुआ. नगर के चर्चित कवि डॉ. कमलेश द्विवेदी

के विशेष आग्रह पर वे उनके निवास पर भी पधारीं. सर्वप्रथम विकासिका, माध्यम और तरंग आदि संस्थाओं की ओर से मंजू जी को स्मृति चिह्न, शाल और मोतियों की माला पहनाकर सम्मानित किया गया. उसके बाद काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ.

मंजू मिश्रा जी की ग़ज़लें बहुत सराही गईं.एक तरफ उन्होंने आम आदमी के हौसले की बात की-
हवाओं ने जो ठानी है चरागों को बुझा देंगे तो हमने भी क़सम ली है ये लौ महफ़ूज़ रक्खेंगे
तो दूसरी ओर आज के व्यस्तता भरे जीवन को रेखांकित किया-
कश्तियाँ लहरें समन्दर यों तो सब हैं साथ-साथ बस कभी मिल बैठ करके गुफ़्तगू होती नहीं
विकासिका के संस्थापक/संयोजक डॉ. विनोद त्रिपाठी ने गीत के माध्यम से क़लमकार की महत्ता बताई-
मैं कवि हूँ मैं हूँ क़लमकार
पौरुष ही मेरा संबल है कर्मठ दल ही मेरा दल है
मैं सत्य आज का जीता हूँ किसने देखा कल का कल है जब कभी चाहता तब मैं ही नभ के तारे लाता उतार

डॉ.शशि शुक्ला ने प्रेम को कुछ इस अंदाज़ में गाया- प्यार लिखूँ या प्रीत लिखूँ मैं हार लिखूँ या जीत लिखूँ
पहले तुमको जी भर लिख लूँ फिर मैं कोई गीत लिखूँ
माध्यम संस्था, कानपुर की अध्यक्ष मधु श्रीवास्तव ने ग़ज़ल में मन की पीर को यों अभिव्यक्त किया-
झुकी-झुकी सी नज़र खोजती सी ख़्वाब चले
दिखाके मुझको जन्नत, हो आफ़ताब चले
नज़र से दूर कभी हूँंगा न, ये कहते थे सौंप के  यादों की तुम तो खुली क़िताब चले
तरंग संस्था की शीतल बाजपेई ने बेटों के महत्व को बताया-
हरदम अपनी ही दुनिया में अपनी मस्ती में रहते हैं

बिल्ली-कुत्ते से डर जाते मगर शेर ख़ुद को कहते हैं
वो अपने मम्मी-पापा की आँखों के तारे होते हैं
कोई कुछ भी कह ले लेकिन बेटे भी प्यारे होते हैं
युवा कवि दिव्यांश द्विवेदी ने अपने घरों से दूर होस्टल में रहने वाले बच्चों की व्यथा व्यक्त की-
अपना दर्द छिपाऊँ कैसे पर सबको बतलाऊँ कैसे
घर की याद बहुत आती है मैं अपने घर जाऊँ कैसे
अंत में संचालन करते हुए डॉ. कमलेश द्विवेदी ने भी वेलकम करते हुए यह गीत पढ़ा-
तेरी ख़ुशियाँ मेरी ख़ुशियाँ तेरे ग़म हैं मेरे ग़म
मैं हूँ तुझमें तू है मुझमें  यानी इक-दूजे में हम
अा जाओ ना, है वेलकम…
रजनी द्विवेदी ने सबके प्रति आभार व्यक्त किया. कुल मिलाकर आनन-फानन में आयोजित यह गोष्ठी भी एक यादगार कविगोष्ठी हो गई.