कविता

संतुष्टि…..

संतुष्टि
सुनो!
व्याप्त है अगर.. तुम्हारे हृदय में
मेरे प्रेम का सुर्ख गुलाबी रंग
तो तुम जरूर महसूस करोगे
मेरे मन के अनकहे जज्बात

कहते हैं.. प्रेम! मौन को दर्शाता है
और खामोशी से दिल की चाह
आहिस्ता से ब्यां कर जाता है
दो दिलों के प्रेम का सच क्या है?

यह तो हम-तुम जानते हैं ना !
माना दूर हैं एक-दूसरे से आज
पर प्रेमी! जीते हैं एकदूसरे में …

हर पल तुम्हारी यादों के सान्निध्य में
समाहित होती मेरी भावनाएं
तुम्हारे अधरों के सामीप्य से
दूर होता मन का एकाकीपन

प्रेम सम्वेदनाओं की चादर पर
लिटाकर मन को निश्चिंतता से
तुम्हारे एहसासों के आनन्द में

एक खुबसूरत गजल बन जाना
मुझे तुम्हारे उतने करीब ले आता
जहां प्रेम समर्पण का निस्तेज प्रवाह
मेरे रोम-रोम में संतुष्टि की आभा भर देता।

*बबली सिन्हा

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