गीत/नवगीत

स्वार्थ और लालच के युग में, सदव्यवहार कहाँ मिलता है

स्वार्थ और लालच के युग में, सदव्यवहार कहाँ मिलता है।
भोगवाद के चले दौर में, सच्चा प्यार कहाँ मिलता है।।
इस युग में चाहत का मतलब
केवल तन को पाना भर है।
प्यार मुहब्बत की मंजिल अब
हमबिस्तर हो जाना भर है।।
आपाधापी के जीवन में, शिष्टाचार कहाँ मिलता है…

नये दौर के नये तरीके,
अपनाने को हैं आमादा।
रिश्तों की हर परंपरा को,
बिसराने पर हैं आमादा।।
लिविन रिलेशन के इस युग में, जीवन सार कहाँ मिलता है…

अपनों की आँखों से बहते,
आँसू पीना भूल गये हम।
सब कुछ पाने की चाहत में,
जीवन जीना भूल गये हम।।
जीवन में रिश्तों को रिश्तों, का अधिकार कहाँ मिलता है…

धर्म कर्म के माने केवल,
लोक दिखावे तक हैं सीमित।
आदर्शों के प्रति निष्ठाएं
बस बहकावे तक हैं सीमित।।
अब वो नैसर्गिक चिर यौवन, वो श्रृंगार कहाँ मिलता है….

सतीश बंसल
१७.०५.२०१८

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.