ब्लॉग/परिचर्चा

जन-जन का सहकार-3

जन-जन का जब हो सहकार,
मिल सकता आनंद-उपहार.

साथी हाथ बढ़ाना, साथी हाथ बढ़ाना 
एक अकेला थक जायेगा मिल कर बोझ उठाना 
साथी हाथ बढ़ाना———-

इसी हाथ बढ़ाने का दूसरा नाम है- जन-जन का सहकार. जन-जन का सहकार की दो कड़ियां आप पढ़ चुके हैं. जन-जन के सहकार की पहली कड़ी में हमने कहा था-
”आप लोग भी अपने अनुभव कामेंट्स में या नीचे दी गई मेल आइ.डी पर शेयर कर सकते हैं. हो सकता है आपका अनुभव आपके नाम से ब्लॉग के रूप में आए.”

हमारे एक पाठक इंद्रेश उनियाल ने कामेंट में अपना अनुभव इस प्रकार लिख भेजा था-

”आदरणीय लीला बहन मेरे घर की गली / सड़क पर 4-5 आवारा डागी अक्सर रहते हैं. मैं उन्हें सुबह शाम दोनों वक्त भोजन देता हूं. पहली रोटी तो गाय के लिये होती ही है जो अपनी काम वाली को दे दी जाती है, उसके घर में गाय है. कुछ दिन पहले पड़ोस की गली से गुजर रहा था 10-12 आवारा डागी भौंकते हुए मेरी ओर आने लगे पर मैं बिना डरे उसी गति से चलता रहा. पास आकर वह डागी स्वयं शांत हो गये और मेरे साथ खेलने लगे. मैंने उन्हें  भी दुलारा.”

प्रिय ब्लॉगर इंद्रेश भाई जी, हमेशा की तरह आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस ब्लॉग की गरिमा में चार चांद लगा दिये हैं. आपकी बात हमें बिलकुल ठीक लगी. डागी भौंकते हुए पास आने लगें, तो बिना डरे उसी गति से चलते रहने से वे डागी स्वयं ही शांत हो जाते हैं.

इंद्रेश भाई जी, इसी तरह ब्लॉग से जुड़े रहिए. आपकी अनेक प्रेरणादायक प्रतिक्रियाएं हमारे जेहन में हैं, जिन्हें हम किसी-न-किसी रूप में उजागर करते रहेंगे. फिलहाल जन-जन का सहकार की एक और कड़ी.

आप सब लोग जानते ही हैं, कि अभी कुछ दिन पहले दिल्ली में तूफान आया था. तूफान रात को 3 बजे आया था. उस समय तो पता नहीं चला, लेकिन सुबह जब सैर के लिए निकले, तो सारी सड़कें और पॉर्क का वॉकिंग ट्रैक वृक्षों की बड़ी-बड़ी टूटी डालियों से घिरी हुई थी. ये बड़ी-बड़ी टूटी डालियां हमारी सैर का रास्ता नहीं रोक सकीं. कारण यह कि उन्हें हटाने के लिए कोई किसी का मुंहं नहीं ताक रहा था. युवा हो या बुजुर्ग, पुरुष हो या नारी, बालक हो या बालिका, जिसके सामने जो डाली आ रही थी, वही उस डाली को को उठाकर एक किनारे कर रहा था. थोड़ी देर में ही पूरी सड़क और ट्रैक इतनी सामान्य दिखाई देने लगे, मानो तूफान आया ही न हो. सैर करने वाले आराम से सैर करते रहे और रेस लगाने वाले मस्ती से रेस लगाते रहे. यह है जन-जन के सहकार और सहकारिता की महिमा और उपयोगिता. सच है-

क्या रोक सके तूफान उन्हें,
जिन्होंने सेहरा बांधा हो सहकार का.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “जन-जन का सहकार-3

  • लीला तिवानी

    जन-जन के सहकार से, बनते सारे काम,
    जीवन सुखमय हो सबका, मन बनता सुख-धाम.

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