गीत/नवगीत

अंधेरे में प्रकाश

मैंने देखा है संध्या के धुंधलके में उजास 
और पाया है रातों के अंधेरे में प्रकाश-

किसी क्षण में तो लगा जैसे कहीं कुछ भी नहीं
एक धुंधली-सी थिरकती-सी किरण भी तो नहीं
ग़म के साये में भी पाया है अचानक ही प्रकाश
और पाया है रातों के अंधेरे में प्रकाश-

गहरे सागर में समाते हुए सूरज के ही साथ
छाया घनघोर अंधेरा घिरी अंधियारी रात
फिर सुबह फैला था सूरज का सलोना-सा प्रकाश
और पाया है रातों के अंधेरे में प्रकाश-

घिर गई काली घटाएं और बरसात हुई
जैसे जीवंत उदासी से मुलाकात हुई
छंट गई काली घटा फैला चहुं ओर प्रकाश
और पाया है रातों के अंधेरे में प्रकाश-

जब कोई साथ न था कोई सहारा भी न था
दो घड़ी चैन से रहने को किनारा भी न था
ऐसे हालात में पाया है स्वयं से ही प्रकाश
और पाया है रातों के अंधेरे में प्रकाश-

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

2 thoughts on “अंधेरे में प्रकाश

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    सुन्दर रचना लीला बहन .

  • लीला तिवानी

    रातों के अंधेरे में और ग़म के हालात में स्वयं से ही प्रकाश पाना पड़ता है. जब हम स्वयं अपने ही प्रकाश से प्रकाशित होते हैं, तभी हमें दूदरे लोगों का साथ मिल पाता है.

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