रंगों की कहानी
इक खरगोश था चिट्टा राम
यार उसका, कौआ कालीराम ॥
खाना पीना और सो जाना
सिवा इसके कोई और न काम ॥
इक दिन कालू कौआराम
बोला चिट्टा राम से ॥
मैं काला तू चिट्टा गोरा
सोच सोच कर हूँ परेशान ॥
जब दो रंगों से चलता काम
सात रंगों का क्यों ये जहान ?
क्यों सात रंगों से इंद्रधनुष चमकाया ?
बेकार में क्यों समय गवाया ?
क्यों मोर में रंगीन चित्रकारी ?
क्यों फूलों में सुंदरता प्यारी ?
चिट्टा राम था बड़ा होशियार,
बोला सुन कालू मेरे यार ॥
पहले उसने दुनिया वाइट एंड ब्लैक बनाई ।
पर उसमें उसे कुछ कमी नजर आई ॥
सफ़ेद तोड़कर सात रंग निकाले ।
समुन्दर आकाश में नील घोल डाले ॥
लाखों फूल सतरंगी बनाये ।
उन पर मंडराने कीट पतंगे आये ॥
उनके ऐसे रंग देखकर ।
जीव जंतु भी भरमाये ॥
तोते को उसने हरा बनाया ।
टमाटर को लाल रंग पहनाया ॥
नील कंठ का कंठ नीला ।
नीम्बू और केला पीला पीला ॥
जामुन को जामुनी बनाया ।
रंगीनअपनी रचना देखकर,
मन ही मन मुस्काया ॥
कालू राम कुछ समझ में आया ?
कालू राम ने उत्तर पाकर ।
अपना सर हिलाया ॥
प्रिय ब्लॉगर रविंदर भाई जी, बहुत दिनों बाद आपको अपना ब्लॉग पर देखकर बहुत खुशी हो रही है. अपना ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है. आपका ब्लॉग रंगों की कहानी मन को मोह गया. दुनिया को रंगीन बनाने का एक अलग-सा नजरिया कमाल का लगा. अत्यंत सटीक व सार्थक ब्लॉग के लिए आभार.
बहुत सुन्दर रचना रवेंदर भाई .