तपन
हमनें हौसलों से सीखा है
मुसीबतों से टकराना
वरना कौन नंगे पाँव
अंगारों पर बार बार चलता है।
सेक लेते हैं पाँव के फफोलो को
अपने ही सब्र की बरफ से….
दूसरा कौन मरहम लगाने का काम करता है।
आंधियां छा जाती हैं अकसर
वक्त मौसमें गर्दिश पर
इनसान की होशियारियाँ कहाँ काम करती हैं।
छूट जाते हैं कई बार पतवार उनके हाथों से भी
जिन्हें दरियायों को जीतने की महारत हासिल होती है।
कतर दिए जाते हैं पंख उन्हीं के अकसर
जिनकी ऊंचा उड़ने की फितरत होती है।
देते हैं तसीहा जो दूसरों की रूह को
उन्हें सकूनेरूह कहाँ नसीब होती हैं?
— विजेता सूरी रमण