कहानी

त्राहिमाम, दुहाई हो …………(कहानी)

पछियारी टोले से मदना छौरा बकरियों को लिए सरेह(वन) की ओर निकला है, उधर फल्गूआ भैंस चराने भउजाई वाले मोबाईल पर रात दिया बुता के पिया….. फूल वाल्यूम में बजाकर झूमता हुआ निकला है, चेथरु महतो भी मेहरारू से लड़ झगड़ के 70 ₹ लेकर निरहुआ का फिलिम शंकर सिनेमा हॉल में देखने सीतामढ़ी निकले है, जीतन जादो तो आज ही बरसात से बचने के लिए मरई संवार रहे है.
जेठ की अलसायी दुपहरी, पुरवईया हवा पछिया के साथ संघर्ष करती हुई मालदह, कृष्णभोग और बमई आम-महुआ की मादक गंध लिए चहुंओर विचर रही है, कोयल की कर्णप्रिय कूक तो सबको लुभा रही, गणेश पौरंगा से पांव रंगती हुई सुमित्रा चाची भी कोयल की कूक के साथ अपनी तान छेड़ रखी है. कोयल के उधर से कोयल की कूक के प्रत्युतर में चाची भी कू बोलकर कोयल को चिढ़ा रही है.
सूर्यदेव का भीषण रूप असहनीय है, लग रहा है की पृथ्वी पर आज खुद आकर नाभिकीय संलयन करेंगे. गरमी देख के चाची सुरूज देव से बतिया भी रही – “कभी कभी काहेला सनक जात बारन तू ऐ सुरूज देव, अंगना में से दुहारी पर आते-आते तरवा (पैर) हमर जर के राख हो गेल, उफर परो ई गरमी के, अंगे-अंग घमौरी पीट दिहलस से अलग, टीविया में प्रचार देख के चौक दुकान पर से उ नाईसिलिया पाउडर मंगवले रहली उ भी बेअसर है”
साईकिल से सरजू बाबा गुजरे है और चाची के सुरुज देव के साथ वार्तालाप पर हस्तक्षेप किये है कि भउजी काहे ला सुरूज देव को गरियाते है, बारिश का मंत्रालय तो इंद्रदेव के पास है, उनके मनाईए वहीं लाएंगे पानी, पूरा सरेह पानी के लिए मुंह बाए खड़ा है, सूर्यदेव अलगे आग उगिल रहे है. अब पृथ्वी का विनाश निकट है, पूरे विश्व में पेड़ पौधा सब काट-काट के बिल्डिंग बना दिया, इंडस्ट्री लगा दिया, दिल्ली में केतना प्रदूषण है टीवी में न देखे है भउजी.  अब पृथ्वी गरमा गया है तो शांत करने के लिए अब पूरे विश्व के नेतवन सब सम्मेलन पर सम्मेलन बुला रहा। पहले कितना बढ़िया सब मौसम समय पर आता था, पर अब पछताए का होत जब चिड़िया चुग गई खेत, परसो पड़ोस गांव में बारिश हुआ, 4 दिन से नेपाल में बरस रहा, लेकिन अपने यहां कहां, पिछला महीना केतना जम के पत्थर गिरा था, पूरे सरेह के गेहूं बर्बाद. कभी सुरूज देव आग उगिलते है तो कभी शेषनाग फन हिला
के भूकंप करवा देते है, अब धरती मईया का विनाश निश्चित है, केतना पापियन सब बढ़ गया है अब भुगतो, और तो और गीता में भी कहा गया है,
“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिः भवति भारत, अभि-उत्थानम्अधर्मस्य तदात्मानं सृजामि अहम।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुस्-कृताम, धर्म संस्थापनाएं-अर्थाय संभवामि युगे-युगे।
मतलब भगवान तो अब पक्का आएंगे और कल्कि अवतार लेना अभी बाकी है। इतना बोलकर
सरजू बाबा साईकिल उधियाते हुए बाजार निकल गए।
 सुमित्रा चाची भी बोल पड़ी आग लागो इनर देव (इंद्रदेव) के भी।
शायद मिनिस्ट्री ऑफ रेन अफेयर्स के प्रमुख इंद्रदेव जी को सुमित्रा चाची की बात भकभका के लग गयी, अगले कुछ घंटों में Southern नेपाल सहित पूरे उत्तर बिहार में निम्न वायुदाब का क्षेत्र बना, बंगाल की खाड़ी से तूफान
उठा बादलों को धकियाता, ठेलता हुआ हिमालय से टकड़ा दिया गया, शाम तक चारो ओर काले-काले बादल मंडराने लगे, सभी दिशाएं मौन-स्तब्ध, हवाओं ने भी भैरव नृत्य करना शुरू कर दिया, बांसवन में बांस झूलता, मचमचाता, गोंगियाता हुआ, पूरे सरेह में वनदेवी अट्टहास करती हुई गुजर रही, नीलगायों का झुंड भागता हुआ।
अगले तीन दिनों तक जम के बारिश हुई, लोग घरों में बंधक बन गए, नदी, खेत, खलिहान सबके तन-मन को इस बारिश ने भिगोया, सूख रही फसलों को नवजीवन मिला. लेकिन नेपाल से निकलने वाली नदियां गुर्राहट करती हुई,
गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, कोसी अपने पूरे रंग में लौट आई है भुजाएं फैलाए नदियां अट्टहास करती नाचती हुई प्रलय के लिए आगे बढ़ रही है।
भविष्य से अनजान, उधर फल्गूआ भैंस चराने गया है, कल्लूआ फिर फूल वाल्यूम में गाना सुन रहा है. नदी के किनारे खेत तमनी कर रहे जगेसर सहनी को प्यास लगी है, वो नदी की ओर गए है, नदी में पानी पी रहे भैंसिया, गईया भी आने वाली बाढ़ तबाही को सूंघ कर आतंकित हो रही है, नीलगायों का झुंड भी  भाग रहा है, जीवन के 60 बसंत देखचुके जगेसर सहनी
अपने अनुभवी हाथों से ही पहाड़ी कनकन ठंडा गेरूआ पानी छूते ही, चिचियाते हुए भागा है, बाढ़………बाढ़….. बाढ़……… नदी किनारा छोड़, भाग रे मदना छौरा,भाग… नदी की ओर से भागते हुए गांव की ओर आया है, कर्रकर्राहट बिजली के बीच क्रुद्ध गुर्राहट के साथ बागमती गोंगिंयाती हुई लोगों के निकट आ रही है, उत्तरवारी और पछियारी टोले के भयातुर लोगों ने कंठों से चींखना शुरू
किया है
– बा….बा…बाढ़ , दाहड़ अलउ रे दाहड़ अलउ ह रे, बाप रे बाप……… लोगों ने भागना शुरू किया,
पूरा गांव सुरक्षित स्थानों की ओर जाना चाह रहा है, खेत में काम कर रहे लोग भाग-भागकर घर आ रहे है, हलवाहा बैल, हेंगा, रस्सी लेकर भाग रहा है. सूर्यदेव भी 3 बजे दिन में ही डूब रहे है, चारो ओर अंधकार. पानी बढना शुरू हुआ, हर घर में कमर भर पानी.
 जटेसर बाबा, बिरेंद्र बाबू तो अपने हिसाब से आकलन कर रहे है, देखिए न तो नहिए बारिश और अचानक से इतना हुआ कि प्रलय, 8 दिन पहिले तक गर्मी से परेशान थे और ई सरवा बंगमतिया का बंधवा टूट गया का हो जटेसर बाबा, नएका रोड भी बह गया है, हां बिरेंद्र सुरक्षित स्थान पर निकलो प्रलय है प्रलय।
लोग एक दूसरे की मदद भी कर रहे है, बांस-बल्ली, केला थम बांधकर लोगों सुरक्षित स्थान पर लाने का प्रयास कर रहे है. निचले इलाकों में जिनका घर है वो भी कमर भर पानी में रहने को मजबूर है, चूल्ही-चउका सब डूब चुका है, अनाज पहले ही बह चुका है, पानी बढ़ता जा रहा है।
रमेसरा करुण वंदन शुरु किया है, पूरे परिवार ने बागमती नदी का वंदन करना शुरु किया है, दुहाई हो बागमती मईया….. दुहाई हो इनरदेव (इंद्रदेव)
लेकिन बागमती मईया पूरे रौ में दिखती हुई…. अट्टहास करती, क्रुद्ध हुई हाहाकार मचाती गुजर रही है…. वंदन…का कोई असर नहीं बस प्रलय है. लोग फिर भी हिम्मत नहीं हार रहे है, बांस बल्ली से ही सही, नाव बनाकर सुरक्षित स्थान पर जाना चाह रहे है. बकरी भी दह गया, मंगरूआ का बाछी..दह रहा है, पकर रे परमेशरा…बछड़ा लेके छप्पर पर चहड़ जो….मंगरुआ की मेहरारू भी दहा रही है…परमेशरा झट से बछड़ा छोड़ के मेहरारू को पकड़ा है, धामिन, ढो़ड़वा, गेहुंहन सांप अलग से बउआ रहा है, गेहुंअन हउ गे मईया, टोकटाक न कर जाएदे, अपने भाग जतई, मंगरूआ के माई, सांप देखते चिचियाई है दी दी गे, दीदी..माई गे माई… लेकिन पानी का बहाव इतना तेज है कि सांप भी बहकर दूसरी ओर चला गया है, सांप के गुजरने के बाद एक-एककर पूरा परिवार भागकर उंचे स्थान सरकारी स्कूल में पहुंचा है, बांस के खूटा गाड़ कर तिरपाल टांग के तंबू लगा है, पचासियो परिवार भागकर तंबू में शरण लिए है. दर्जनों मवेशी तो बह गया, बारिश रुकने का नाम न ले रही.  त्राहिमाम दुहाई हो इनरदेव,..दुहाई हो बरहम बाबा..दुहाई हो देवता पीतर…..अब बस.
© आनंद कुमार,
   सीतामढी

आनंद कुमार

विद्यार्थी हूं. लिखकर सीखना और सीखकर लिखना चाहता हूं. सीतामढ़ी, बिहार. ईमेल-anandrajanandu7@gmail.com