कहानी

“रातरानी का दिन सराबोर”

जी तो करता है कि लाज शरम हया सब कुछ छोड़कर पोखरे में जाकर कूद पड़ूँ और पल्थी मारकर उसकी तलहटी में तबतक बैठी रहूँ जबतक मेरे हाथ पैर ठिठुर न जाय। यह गर्मी है कि आग की बारिस, सुबह होते ही पसीना चूने लगता है। बाबा के लगाए हुये पेड़ जो छाया व फल भी देते थे गुजारा करने के लिए घर बने तो कट गए जिसमें झूलता पंखा जब बिजली आने पर चलता है तो बाहर की गर्मी खींचकर कमरे में भर देता हैं, हाँ रात में कुछ राहत जरूर देता है पर छ्त इतनी गरम रहती है कि बिस्तर भीग ही जाता है। सुनयना की प्रिय सहेली आज कड़कती धूप में गर्मी की छुट्टी में उससे मिलने आयी है पर सुनयना उसको शीतल छाया नहीं दे पा रही है जब कि दोनों का बचपन गाँव में बीता हैं जिसमें मानों बागों की हवा अब भी विद्यमान है पर हरियाली छू- मंतर हो गयी है। दोनों अपने पसीने को सुखाने की भरपूर कोशिश कर रही हैं पर कभी किचन की गर्मी तो कभी झंझटों की चिलमिलाती धूप उन्हें धारासायी कर देती है। मंहगाई की मार और बच्चों की पढ़ाई का खर्च घमौरियों को रगड़ रहा है मानों मिर्च वाला हाथ उन्हें छू गया है, पति की कमाई व खेती की आवक खाने में कम नमक की तरह है जो स्वाद को बिगाड़ रही है।

फिर भी गरम तवे की गरम रोटी जब आंटा गुथाई के बाद थाली में आयी और चटनी, अंचार, सब्जी-सलाद व पापड़ इत्यादि ने मुंह का जायका बदला तो पसीजते बिस्तर ने आपस में यह फैसला किया कि खाली पड़ी जमीन पर बरसात आने पर पेड़ लगेंगे और गाँव के बच्चों से पचास रुपया लेकर उनको ट्यूसन दिया जाएगा साथ ही सिलाई मशीन लाकर कुछ सिलाई का काम भी होगा, अजी सुनते हो कल बाजार जाने का इरादा है क्या?, क्यों? भागवान इस लू में बाजार का क्या काम पड़ गया। कोई खास नहीं, सिलाई मशीन लाना है, बैठे- बैठे कुछ उद्यम तो करना ही होगा, ताकि बरसात आने पर दरवाजे पर हरियाली हो और फल-फूल भी महकें। अहो-भाग्य, चंपा ने क्या गुल खिलाया, जो रात की रानी दिन को सराबोर कर रही है।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ