कविता

प्रकृति….

वक्त की नजाकत को
हम भी समझने लगे हैं
प्रकृति को धरोहर समझने लगे हैं
पेड़ लगाने लगे हैं
वनोत्सव बनाने लगे हैं
तालाब जलाशयों का
पुनरुद्धार कराने लगे हैं
आयुर्वेदिक उत्पादों का उपयोग होने लगा है
हम भी हरियाली उत्सव मनाने लगे हैं
मवेशियों को लाइवस्टाक कहने लगे हैं
बैलगाड़ी तो नहीं पर
बैटरी वाली गाड़ी में चलने लगे हैं
प्रकृति की लीला को समझने लगे हैं
स्वच्छता कार्यक्रम चलाने लगे हैं
नदियाँ वनों के संरक्षण होने लगे हैं
दिलों में भी मानवता दीप जगमगाने लगे हैं
आरजू है इंसानों में इंसानियत जगाने की
ख्वाबो में ऐसा जहां बसाने लगे हैं
प्रकृति संरक्षण में हम भी
अपना योगदान देने लगे हैं।

*बबली सिन्हा

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