सामाजिक

मौत जिंदगी का अकाट सत्य !

आज दोपहर की धूप में पहले से कही ज्यादा तमनगी थी । सोंचा किसी सजऱ की छांव तले कुछ देर ठहर लूं ,फिर एक हूँक की कर्कश आवाज़ को सुनकर स्वतः ही मोटरसाइकिल पर ब्रेक लग गए । ये समझने में पल भर भी नही लगा कि इस घर मे किसी की म्रत्यु हुई है । कुछ पल ठहरने के बाद ‘होगा कोई’ ऐसा सोंच कर मैं आगे बढ़ चुका था, किन्तु उस आह का असर मेरे ह्रदय को विचलित कर गया । आखिर क्या है मौत? मौत आखिर क्या है? है क्या ये मौत आखिर?
मौत जिंदगी का एक अकाट सत्य है, हम सभी को इस कुलाबे से होकर गुजरना ही है चाहे जीवन स्तर कैसा भी क्यों न हो और चाहे सामाजिक तौर पर हमने उसे कई तरह से परिभाषित किया हो आधार चाहे जो भी हो, भाषायी ,जातिगत,सम्पत्ति या फिर जो भी कुछ हो ,समय असमय उसे इससे गुजरना ही है और ये सर्वविदित है लेकिन फिर भी अक्सर ऐसा होता है जब हमे इस अनंत सत्य को स्वीकारने में बड़ी मुश्किल आती है….. क्योंकि ऐसा मेने भी महसूस किया है , जैसा कि हम सुनते या देखते है कि अपने आस पास कि अमुक बंदा नहीं रहा या ऐसा कुछ जिसे हम केवल उसके नाम से ही जानते है काम से या उसके साथ से नहीं तो हमे जरा भी देर या मुश्किल नहीं आती इसे सहज स्वीकार करने में और हम इसे एक प्राकृतिक दुखदायी घटना लेकिन न टालने वाली प्रक्रिया मानकर सहज हो जाते है और हमारे कार्यों पर इसका कोई प्रतिकूल फर्क नहीं पड़ता लेकिन अगर ऐसा हो कि आप किसी को उसके काम से जानते है तो बात थोड़ी अलग है लेकिन अगर आप किसी को उसके साथ से जानते हो तो मायने ही बदल जाते है आपके लिए, परिस्थिति ऐसी होती है जेसी घडी की समय के साथ बेईमानी । क्योकि बेहद मुश्किल होता है किसी मानस पटल पर अंकित उस छवि के अस्तित्व को नकारना और सच में अगर आप कोशिश भी करते है तो उस से जुडी हर चीज़ आपको ये नहीं करने देती खैर जो भी हो यह एक अनंत सत्य है जिसे हमे स्वीकारना ही है क्योकि हम इसके लिए बाध्य हैं और वो इसलिए क्योकि हमारे पास विकल्प के लिए कुछ भी नहीं है |

नीरज सचान BHEL झांसी ।

नीरज सचान

Asstt Engineer BHEL Jhansi. Mo.: 9200012777 email -neerajsachan@bhel.in