कविता

मैं शाला में जाऊँगा

माँ मुझको भी ला दे बस्ता ,
 मैं शाला में जाऊँगा
खाने की छुट्टी में मैं भी
भोजन मन भर पाऊँगा
भूख मिटेगी , ज्ञान बढ़ेगा
मन में खेद नहीं होगा
कूड़ा करकट चुनता हूँ
अब तन पे स्वेद नहीं होगा
पढूं किताबें , बड़े ध्यान से
अपना ज्ञान बढ़ाऊँगा
माँ मुझको भी ला दे बस्ता
मैं शाला में जाऊँगा  ।।
ना इंजीनियर , ना ही डॉक्टर
बनने की कोई ख्वाहिश है
किसी तरह नेता बन जाऊँ
बस इतनी सी चॉइस है
सभी के पेट में दाना हो
और सबके तन पर हों कपड़े
सब खुद को इंसान समझ लें
जात धरम पर ना झगड़े
कभी किसी को भूख लगे ना
वो गोली बनवाऊँगा
माँ मुझको भी ला दे बस्ता
मैं शाला में जाऊँगा ।।
अमन चैन होगा हर घर में
घर घर में होगी खुशहाली
रंगबिरंगे दिन होंगे और
रातें होंगी जैसे दिवाली
नफरत दूर भगा कर जग से
प्रेम के पाठ पढाऊँगा
माँ मुझको भी ला दे बस्ता
मैं शाला में जाऊँगा ।।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।