लघुकथा

विवशता

विश्व पर्यावरण दिवस पर हर गली-मुहल्ले में सम्मेलन करने का आदेश ऊपर से आया हुआ था. सभी छुटभैये नेताओं को भी अपने क्षेत्र में सम्मेलन आयोजित करने का अवसर मिल गया था. नेताजी ने सम्मेलन में कहा-

भाइयों और बहिनों, इस साल के विश्व पर्यावरण दिवस की थीम है- ‘प्लास्टिक प्रदूषण की समाप्ति’. इसलिए हमने आप सबको अपने साथ जूट बैग लाने को कहा था. आप सबके पास जूट बैग देखकर मुझे लग रहा है, कि हमारे देश के नागरिक समझदार हो गए हैं.
”वो तो आपका गॉर्ड बिना जूट बैग के अंदर ही नहीं घुसने दे रहा था”. एक आदमी भुनभुनाया, लेकिन माइक की तेज आवाज में उसकी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज बनकर रह गई.
”प्लास्टिक प्रदूषण की समाप्ति होना बहुत आवश्यक है, क्योंकि इससे नदी-नाले-नालियां रुक जाती हैं, जानवर और कछुए-मछली जैसे जलचर मर जाते हैं, धरती बंजर बन जाती है. आपको सुनकर हैरानी होगी, कि प्लास्टिक नष्ट होने में 1000 साल लग जाते हैं. इसलिए आपसे गुजारिश है, कि प्लास्टिक का उपयोग न करें तो बहुत अच्छा. आप लोग वापिस जाते समय काउंटर से चाय-नाश्ता अवश्य लेकर जाइएगा और प्लास्टिक का उपयोग बंद कर दीजिएगा. जय हिंद”
चाय-नाश्ते के काउंटर पर भगदड़ तो मचनी थी ही. बहरहाल सबको एक प्लास्टिक बैग में चाय और एक प्लास्टिक बैग में आलू की सब्जी के साथ 4-4 पूड़ियां दी गईं. जूट बैग में चाय-नाश्ता रखकर सब चल दिए. रामलाल से रहा न गया- ”भाई शामलाल नेता जी ने तो कहा था- ”प्लास्टिक का उपयोग न करें तो बहुत अच्छा. प्लास्टिक जहर है और हमें जहर में ही चाय और सब्जी दी गई है.”
”ठीक कहते हो भाई, हमारी भी विवशता है. हमें सम्मेलन करने का आदेश ही दिया गया था, धनराशि नहीं. सारा इंतजाम हम कहां से करते?” पीछे से आते हुए नेता जी ने सुनकर फरमाया.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “विवशता

  • राजकुमार कांदु

    आदरणीय बहनजी ! ये नेता बड़े घाघ जाति के प्रजाति होते हैं । अपनी हर गलती और स्वार्थ को ढंकने के लिए इनके पास झूठ के बहुत सारे खूबसूरत आवरण होते हैं जिनका उपयोग करके इन्हें जनता को बेवकूफ बनाना भलीभांति आता है । ऐसे ही कथनी और करनी के फर्क को फंड की कमी के आवरण से ढंकते नेताजी की कहानी को आपने बड़ी खूबसूरती से पेश किया है । एक और सुंदर रचना के लिए आपका धन्यवाद !

    • लीला तिवानी

      प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको गीत बहुत अच्छा लगा. हमेशा की तरह आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस ब्लॉग की गरिमा में चार चांद लगा दिये हैं. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    छुटभैये नेता की विवशता ने सभी नेताओं की कथनी और करनी में अंतर को भलीभांति स्पष्ट कर दिया. सच है, पर उपदेश कुशल बहुतेरे. प्लास्टिक का उपयोग बंद करने की खोखली नसीहत देती हुई लघुकथा.

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