गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

यार, जबसे तू खफा सा हो गया है।
हर ख़ुशी से, फासला सा हो गया है।
इस दफा तो, ओर है न छोर इसका।
दर्द बढ़ कर, आसमां सा हो गया है।।
आते जाते, पूछते सब हाल मेरा।
क्यों ये चेहरा, आईना सा हो गया है।।
इक अकेला शख्स, जो मेरा जहाँ था।
वो बदल कर, इस जहां सा हो गया है।।
खो गया सुकूँ भी, कुछ इस तरह कि।
मिलता न जिसका पता, सा हो गया है।।
दोस्तों पर तो, यकीं का हाल जैसे।
रेत पर रखे मकाँ सा हो गया है।।
तुझसे मै करके गिले, बैठा हूँ जबसे।
खुद ही से जैसे गिला सा हो गया है।।
 डॉ मीनाक्षी शर्मा

*डॉ. मीनाक्षी शर्मा

सहायक अध्यापिका जन्म तिथि- 11/07/1975 साहिबाबाद ग़ाज़ियाबाद फोन नं -9716006178 विधा- कविता,गीत, ग़ज़लें, बाल कथा, लघुकथा