राजनीति

प्रणव मुखर्जी का आरएसएस से पुराना याराना

पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का संघ से पुराना याराना है। संघ के वर्तमान सरसंघचालक डॉ मोहनराव भागवत से उनकी पुरानी दोस्ती है। डॉ मोहनराव भागवत का केन्द्र भी बंगाल रहा है। संघ संस्थापक डॉ हेडगेवार से लेकर द्वितीय सरसंघचालक माधवराव सदाशिव राव गोलवरकर उपाख्याय श्रीगुरूजीए तृतीय सरसंघचालक बाला साहब देवरसए चतुर्थ सरसंघचालक राजेन्द्र सिंह उपाख्याय रज्जू भैया और पांचवे सरसंघचालक कुपहल्ली सितारमैया सुदर्शन से लेकर वर्तमान सरसंघचालक डॉ मोहनराव भागवत ने बंगाल में काम किया है। इसलिए संघ की जमीनी सच्चाई से प्रणव मुखर्जी बखूबी परिचित हैं। उनसे संघ प्रचारकों का पुराना संपर्क व संबंध रहा है।

डॉ हेडगेवार 1910 में जब डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए कोलकाता गये तो उस समय वह देश की नामी क्रांतिकारी संस्था अनुशीलन समिति से जुड़े। 1915 में  नागपुर लौटने पर वह कांग्रेस में सक्रिय हो गये। कुछ समय में विदर्भ प्रांतीय कांग्रेस के सचिव बन गये। 1920 में जब नागपुर में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ तो डॉ हेडगेवार को स्वागत समिति का अध्यक्ष बनाया गया। अधिवेशन में डॉ केशव राव बलिराम हेडगेवार ने कांग्रेस में पहली बार पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव प्रस्तुत किया। वह प्रस्ताव पारित नहीं हुआ।  डॉ साहब ने 1921 में कांग्रेस के असहयोग आन्दोलन में सत्याग्रह कर गिरफ्तारी दी। इसके बदले उन्हें एक वर्ष की जेल हुयी। तब तक वह इतने लोकप्रिय हो चुके थे कि उनकी रिहाई पर उनके स्वागत के लिए आयोजित सभा को कांग्रेस के बड़े नेता पंडित मोतीलाल नेहरु और हकीम अजमल खां जैसे दिग्गजों ने संबोधित किया। इस दौरान डॉ हेडगेवार को अनुभव में आया कि समाज में संगठन के अभाव में हम गुलाम हुए। इसलिए उन्होंने 1925 में आरएसएस की स्थापना की।

यही कारण रहा कि संघ कार्य की शुरुआत के बाद भी डॉ हेडगेवार व्यक्तिगत और सांगठनिक रूप से कांग्रेस और क्रान्तिकारियों का सहयोग करते रहे। दिसम्बर 1930 में जब महात्मा गांधी ने नमक कानून विरोधी आन्दोलन छेड़ा तो उसमें भी डॉ हेडगेवार ने संघ प्रमुख ;सरसंघचालकद्ध की जिम्मेदारी डॉ परापंजे को सौंप कर व्यक्तिगत रूप से अपने एक दर्जन सहयोगियों के साथ भाग लिया। जिसमें उन्हें नौ माह की कैद हुयी। इसी तरह 1929 में जब लाहौर में हुए कांग्रेस अधिवेशन में पूर्व स्वराज का प्रस्ताव पास किया गया और 26 जनवरी 1930 को देश भर में तिरंगा फहराने का आह्वान किया तो डॉ हेडगेवार के निर्देश पर संघ की सभी शाखाओं में 30 जनवरी को तिरंगा फहराकर पूर्ण स्वराज प्राप्ति का संकल्प लिया गया।

1928 में लाहौर में सांडर्स की हत्या के बाद भगतसिंहए राजगुरु और सुखदेव फरार हुए तो राजगुरु फरारी के दौरान नागपुर में डॉ हेडगेवार डॉ केशव राव बलिराम हेडगेवार के पास पहुंचे थे। संघ प्रचारक भय्या जी ढाणी के निवास पर ठहरने की व्यवस्था हुई थी। मध्यप्रांत की प्रांतीय कांग्रेस की ष्संकल्पष् पत्रिका के प्रकाशन का दायित्व भी डॉ हेडगेवार पर था।

संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधव राव सदाशिवराव गोलवलकर का काशी में संघ के संपर्क में आये। कुछ समय काशी में रहकर वे नागपुर लौट आये। इसी समय उनका सम्पर्क रामकृष्ण मिशन से भी हुआ और वे एक दिन चुपचाप बंगाल के सारगाछी आश्रम चले गये। वहां उन्होंने स्वामी अखण्डानंद जी से दीक्षा ली। इसके बाद संघ कार्य श्रीगुरू जी ने भी बंगाल से ही शुरू किया।

संघ के तृतीय सरसंघचालक पहले नागपुर के नगर कार्यवाह रहे। इस दौरान डॉ हेडगेवार ने उन्हें सबसे पहले प्रचारक बनाकर 1939 में कोलकाता भेजा। डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को संघ के निकट लाने वाले बाला साहब देवरस ही थे। देवरस जी ने ही डॉ मुखर्जी की मुलाकात श्रीगुरू जी से कराई थी। उस समय वहां संघ का काम खड़ा करना बड़ा कठिन था। डॉ मुखर्जी सबसे कम उम्र के कुलपति बने थे। बाला साहब देवरस ने उन्हें शाखा देखने के लिए आमंत्रित किया।

इसी तरह संघ के चतुर्थ सरसंघचालक राजेन्द्र सिंह उपाख्य रज्जू भैया का कार्यक्षेत्र भी 1975 में बंगाल रहा है। उस समय रज्जू भैया के पास आधा उत्तर प्रदेशए बिहार और पश्चिमी बंगाल इन तीनों प्रान्त का काम था। वहीं संघ के पाँचवे सरसंघचालक सुदर्शन जी का केन्द्र 1977 में कलकत्ता बनाया गया। इस दौरान वह अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख के साथ.साथ पूर्वोत्तर भारत के क्षेत्र प्रचारक भी रहे।

प्रणव मुखर्जी देश के पहले राष्ट्रपति हैं जिन्होंने पद पर रहते हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को राष्ट्रपति भवन में भोज पर आमंत्रित किया था। वैसे मोहन भागवत पहले भी दो बार राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मिल चुके हैं।

पिछले वर्ष जब संघ के सरसंघचालक राष्ट्रपति भवन गये थे तब भी मीडिया राष्ट्रपति चुनाव से जोड़कर देख रही थी। प्रणव मुखर्जी कोई हल्के व्यक्ति नहीं है। वह कांग्रेस के बंधुआ मजदूर भी नहीं हैं। राष्ट्रपति हो जाने के बाद वह व्यक्ति किसी व्यक्ति या पार्टी विशेष का नहीं वह राष्ट्र की सम्पदा है। अब उन्हें कहां जाना है और कहां नहीं जाना है वे सोनिया गांधी से नहीं पूछेंगे। जब वह देश के राष्ट्रपति बने तभी से कांग्रेस का अधिकार उनके ऊपर से खत्म हो गया। आज जो कांग्रेसी चिल्ला रहे हैं वह एक साल पहले बोलते। लेकिन उस समय नहीं बोले जब बोलना था। अगर आज बोल भी रहे हैं तो वह पण्डित नेहरू और इन्दिरा गांधी का अपमान कर रहे हैं। गणतंत्र दिवस की परेड में हिस्सा लेने का गौरव केवल आज तक एक संगठन वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को ही हासिल है। वह भी पण्डित नेहरू के आग्रह पर संघ के स्वयंसेवकों ने परेड में हिस्सा लिया था।

यह अलग बात है कि अब तक किसी राष्ट्रपति में  सरसंघचालक को राष्ट्रपति भवन में बुलाने की हिम्मत नहीं जुट पायी। यद्यपि 1996 में जब राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने का न्योता दिया थाए तो वामपंथियों और समाजवादियों ने राष्ट्रपति के निर्णय के खिलाफ जंतर मंतर से राष्ट्रपति भवन तक कूच किया था। जबकि राष्ट्रपति ने कोई गलत फैसला नहीं किया था। राष्ट्रपति ने सबसे बड़ी पार्टी को सरकार बनाने के लिए बुलाया था। तब कांग्रेसी और वामपंथियों को यह खल रहा था कि हमारे विरोधी विचारधारा का व्यक्ति प्रधानमंत्री बनने जा रहा है।

डॉ अब्दुल कलाम भाजपा की मदद से राष्ट्रपति बने थे। लेकिन वह भी ऐसी हिम्मत नहीं कर पाए थे, जैसी प्रणब मुखर्जी ने की है। यह अलग बात है कि संघ मुख्यालय डॉ कलाम जरूर गये थे।

पहली बार सोनिया कांग्रेस के थींक टैंक माने जाने वाले प्रणव दा ने हिम्मत दिखाई। प्रणब मुखर्जी ने संघ कार्यक्रम में हिस्सा लेकर यह सन्देश देने में जरूर सफल हुए हैं कि देश व समाज में संघ की लोकप्रियता बढ़ रही है।

जो कांग्रेसी नेता नागपुर जाने से पूर्व प्रणव मुखर्जी का विरोध कर रहे थे। वहीं कार्यक्रम में शामिल होने के बाद प्रशंसा करते नजर आये। यहां तक कि कांग्रेस प्रवक्ता ने बाद में कहा कि कांग्रेस की तरफ से आधिकारिक रूप से किसी ने उन्हें आरएसएस के कार्यक्रम में शामिल होने से नहीं रोका। प्रणव मुखर्जी विरोधों को दरकिनार कर कार्यक्रम में शामिल तो हुए लेकिन लिखा लिखाया भाषण ही पढ़ा। उन्होंने समारोप कार्यक्रम में स्वयंसेवकों द्वारा दिखाये गये करतब, शारीरिक प्रदर्शन, दण्ड युद्ध, निःयुद्ध और खेल के प्रदर्शन पर एक शब्द भी नहीं बोला। यह अलग बात रही कि वह कार्यक्रम में शामिल होकर राजनीतिक परिपक्वता का परिचय जरूर दे गये। जो कांग्रेसी नेता दो दिन पहले तक भला बुरा कह रहे थे वह प्रणव का गुणगान करते नजर आये। प्रणव ने भाषण में जो विषय रखा संघ उसी विचार को लेकर समाज के बीच काम कर रहा है।

— बृजनन्दन यादव

(लेखक हिन्दुस्थान समाचार एजेंसी में पत्रकार हैं)

बृज नन्दन यादव

संवाददाता, हिंदुस्थान समाचार

2 thoughts on “प्रणव मुखर्जी का आरएसएस से पुराना याराना

  • जवाहर लाल सिंह

    तर्कसंगत विश्लेषण!

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा लेख !

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