गीत/नवगीत

विनती

हे प्रभो हमको शरण में,
आप अपनी लीजिए,
दूर करके दुर्गुणों को,
ज्ञान अंजन दीजिए.

सच का दें हम साथ हर पल,
झूठ को पलने न दें,
पुण्य का बनकर सहारा,
पाप को चलने न दें.

शुद्ध हो मन, शुद्ध हो तन,
शुद्ध वाणी, कर्म हों,
शुद्ध ध्येय हो नाथ अपना,
शुद्ध साधन, धर्म हो.

प्रेम हो दीनों से सबको,
एकता का भाव हो,
भेदभाव को दूर करने,
का सभी को चाव हो.

हो न डर किसको किसी का,
वीरता भरपूर हो,
नारियों का मान हो और,
गुरुजनों का नूर हो.

धर्म के कानून से सब,
आचरण करते रहें,
याद रखें मौत को और,
आपको भजते रहें.

आत्मा की टेर को हम, 
हे प्रभु दबने न दें,
संशय-गरल को फेंककर,
विश्वास-मधु से घट भरें.

सुंदर मन हो प्रभु हमारा,
दया भाव से हों भरपूर,
चलें सदा संतोष-पथ पर,
कृपा आपकी रहे न दूर.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “विनती

  • लीला तिवानी

    सबके कल्याण हेतु प्रभु से विनती करने से मन शांत होता है. सबके भले में खुद का भी भला हो जाता है.

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