कविता

छ्न्द – हंसगति

छ्न्द – हंसगति ( २0 मात्रा ) शिल्प विधान — 11,9= 20 प्रथम चरण ११ मात्रा ,चरणान्त २१ से अनिवार्य ।

जस वीणा रसधार, भरी है माता।

कर शारद उपकार, भक्त का नाता।।

नमन करूँ दिन-रात, मातु मम भोली।

भर शब्दों का ज्ञान, सहज हो बोली।।-1

झंकृत हों सब तार, मृदुल धुन गाऊँ।

छंद सृजन अनुसार, राग अपनाऊँ।।

हों मीठे सुरताल, भाव मन भाए।

नित नव नूतन रूप, छटा विखराए।।-2

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ