कविता

ख़्याल कुछ ऐसे भी…

जीवन मे प्रेम कभी भी… विदा_ले_लेता_है…
कभी कभी कह कर… कभी चुपचाप…!
कभी आँखो मे आंसू देकर…
और कभी होंठों की हँसी छीन कर…
जब प्रेम विदा होता है…
एक अजीब सी मायूसी…
एक अजीब सा दर्द… छोड़ देता है ॥
प्रेम जब विदा लेता है…
तो बारिश को आते देख…
आँखें भी रो लेती हैं…!
प्रेम_जब_विदा_लेता_है…
तो जीवन कहीं खो जाता है…
रात को तकिया… हमराज़ बन जाता है…
और सुबह सुजी हुई… आँखें_सच_कह_देती_है ॥
आईने में ख़ुद को देख…
पेहचानना मुश्किल हो जाता है…!
प्रेम जब विदा लेता है…
तो जीवन से बसंत चला जाता है…
फिर समझदारी की… चादर ओढ़ कर…
इंसान बहुत समझदार हो जाता है…
अपने दिल के ख़ालीपन को…
नए नए तरीक़े से भरता है…
पर फिर भी वो…
ख़ुद को ख़ाली ही पाता है…!
प्रेम जब विदा ले लेता है…
तो जीवन और मृत्यु के दर्मियान…
कुछ फ़ासला नहीं होता है…
इंसान भीड़ मे हँस लेता है…
अतः अकेले मे रोता है ॥
और सच पूछो तो इंसान…
प्रेम के साथ ही विदा हो लेता है ॥
पुछा_था_उसने…!
क्या_रह_सकती_हो_मेरे_बिना…?
एक_शब्द_में_जवाब।
गीता जैन

गीता जैन

अध्यापिका बंगलौर रूचि- लेखन