गीत/नवगीत

बाल श्रमिक की पुकार

                                             विश्व बालश्रम निषेध दिवस पर विशेष

हर साल 12 जून को बाल श्रम निषेध दिवस मनाते हो,
बोलो तो तुम मुझे क्या बताना चाहते हो?
तुम कहते हो बच्चे हैं भगवान स्वरुप, 
श्रम करवाना नहीं अनुरूप.
पढ़ाई पर अब ध्यान धरें, 
मजदूरी करना बंद करें.
बिना छोटू और रामू के होटल नहीं चलाते हो,
बातों से मुझे क्यों बहलाते हो?
शिक्षा ग्रहण करने का यही क्षण है, 
छोड़ें मज़दूरी और श्रम पढ़ने का समय है.
यह भी कहते हो बच्चे हैं देश का भविष्य, 
उनको सजग बनाने का निर्धारित करते हो उच्च लक्ष्य.
मजदूरी से नहीं होगा यह सपना साकार, 
उसे छोड़ शिक्षा का करना होगा विचार.
जीवन में आगे बढ़ने का पाठ पढ़ाते हो, 
कितने बच्चों को ज्ञानवान और सक्षम बनाते हो?
माना कि मेहनत श्रम जीवन में आवश्यक, 
शिक्षा का भी तो है अपना महत्त्व और हमारा हक.
क्यों नहीं हमें यथोचित ज्ञान और शिक्षा दिलाते हो?
हमें जागरूक करके श्रम शोषण से बचाते हो?
कुछ करना चाहते हो तो बाल श्रम को ख़त्म करें, 
केवल बातें बनाकर उनका जीवन नष्ट न करें.
आप समर्थ हों तो किसी गरीब बालक को पढ़ाएं, 
ताकि धन के अभाव में वह मजदूरी पर न जाए.
एक भी बालक को तुमने पढ़ा दिया,
तो समझो देश को सौ कदम आगे बढ़ा दिया.
आओ-आओ मुझे बचाओ-खिलाओ-पिलाओ-पढ़ाओ,
केवल भाषणबाजी में अपना समय व्यर्थ न गंवाओ.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “बाल श्रमिक की पुकार

  • लीला तिवानी

    12 जून बाल श्रम निषेध दिवसआज 12 जून बाल श्रम निषेध दिवस है. विश्व बालश्रम निषेध दिवस पूरे विश्व में बाल मजदूरी के विरोध में मनाया जाता है। भारत देश के बारे में कहा जाए तो यहां बाल मजदूरी बहुत बड़ी समस्या है। भारत में बाल मजदूरी की समस्या सदियों से चली आ रही है। कहने को भारत देश में बच्चों को भगवान का रूप माना जाता है। फिर भी बच्चों से बाल मजदूरी कराई जाती है। जो दिन बच्चों के पढ़ने, खेलने और कूदने के होते हैं, उन्हें बाल मजदूर बनना पड़ता है। इससे बच्चों का भविष्य अंधकारमय होता जा रहा है। कहने को सरकारें बाल मजदूरी को खत्म करने के लिए बड़े-बड़े वादे और घोषणाएं करती हैं, फिर भी होता सिर्फ ढाक के वही तीन पात है।

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