गीतिका/ग़ज़ल

एक सन्नाटा यहाँ बिखरा हुआ

नफरते बोना यहाँ सस्ता हुआ |
प्रेम उपजाना बहुत महंगा हुआ |

हर तरफ काँटो की बो डाली फसल
और अब तुम पूंछते हो क्या हुआ |

आग बरसाता हुआ सूरज कहे –
गर न चेते तो समझ मरना हुआ |

डाल पर बैठे उसी को काटते-
देख दुर्बुद्धि मनुज सदमा हुआ|

सूखते झरने सरोवर झील सब –
एक सन्नाटा यहाँ बिखरा हुआ |

तिशनगी बढ़ती ही जाए अब यहाँ-
है समंदर दूर तक फैला हुआ |

है धरा तपती शजर की छांव बिन –
मौसमो का रुख लगे बदला हुआ |
मंजूषा श्रीवास्तव

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016