लघुकथा

नयी पहल

रजुआ के बाऊजी बी.ए के फारम कहिया मिलेला।
का करब फारम का, दिमाग सठिया गइल का।
बाऊजी के समझ से परे था अशिक्षित पत्नी बी.ए के फार्म की बात उस वक्त क्यों कर रही है जब घर के चिराग को बुझे महीना दिन नहीं हुए।
   राजू चार बहनों का इकलौता बिगडा लडका था।नाजायज फरमाइशें पूरी होती रहने के कारण गलत संगत में फंस गया।धनी पिता को राजू के बहके कदम में बेड़ी लगाने के लिये विवाह समाधान नजर आया।
      गरीब घर की कन्या तनु बहु बनकर आ गई। राजू  उसके साथ बहुत बुरा व्यवहार करता।नशे की हालत में तनु पर हाथ उठाकर अपनी मर्दानगी पर फख्र करता। माता पिता के समझाने का कोई असर नहीं पड़ता । अत्यधिक नशे के कारण राजू की असमय मौत हो गयी। सास बहू की दयनीय स्थिति के लिए खुद को दोषी मानती। बहु को शिक्षित कर नयी जिंदगी देने की चाह ने उसे पति से फार्म की बात करने को मजबूर किया।
     तनु आज बैंक में पदाधिकारी है। सास ससुर ने माता पिता का फर्ज पुरा करते हुए सुयोग्य लडके से तनु का पुनर्विवाह कराया। एक नयी पहल जिसने बहु को बेटी का सम्मान दिया।
किरण बरनवाल

किरण बरनवाल

मैं जमशेदपुर में रहती हूँ और बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय से स्नातक किया।एक सफल गृहणी के साथ लेखन में रुचि है।युवावस्था से ही हिन्दी साहित्य के प्रति विशेष झुकाव रहा।