सामाजिक

लेख– उज्ज्वला योजना सरकार की बडी उपलब्धि!

माना भारत ग्रामीण संरचना वाला देश है। पर यह तो उस विकसित होते देश के साथ पिछले सत्तर वर्षों में सियासतदानों ने भद्दा मज़ाक नहीं तो क्या किया। एक तरफ़ पिछड़े वर्ग और महिलाओं के मत पर सियासी रोटी सेंकते रहें, और दूसरी तरफ़ उनके बेहतरी के बजाय स्वहित साधना में लगे रहें। जिस दरमियान सिर्फ़ नेताओं के सुख- सुविधाओं में वृद्धि होती गई। ग़रीब और वंचित तबक़े को सिर्फ़ नारों में उलझा कर रखा गया। उसे अगर दूर करने की पहल मोदी सरकार ने पिछले चार वर्षों में की है। तो उसके नेक कदमों की सराहना होनी चाहिए। भारत जिन मुद्दों पर वैश्विक मंच पर पिछड़ा हुआ था, पूर्ववर्ती सरकारों में। उसे दूर करने की सार्थक पहल पिछले चार वर्षों में दीगर हो रहीं है। जो पिछड़ी और अनुसूचित जातियां और देश की आधी आबादी सिर्फ़ पूर्ववर्ती सरकारों के कार्यकाल में वोटबैंक तक सीमित थी। उनके सामाजिक उत्थान और सामाजिक जीवन को बेहतरी की ओर ले जाने का बीड़ा मोदी सरकार ने उठाया हुआ है। मोदी सरकार ने अनुसूचित जाति- जनजाति और महिलाओं के जीवन को बेहतरी की ओर ले जाने के लिए तमाम योजनाएं क्रियान्वित की है। जिसमें से एक है, प्रधानमंत्री उज्जवला योजना। इस योजना से पूर्व ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में मिट्टी के चूल्हे पर लकड़ियों को जलाकर खाना पकाया जाता रहा है। लकड़ियाँ जलने से एक तरफ जहां पर्यावरण प्रदूषित होता है, तो दूसरी तरफ चूल्हे से धुआँ निकलने के कारण महिलाओं को कई तरह की बीमारियों का भी सामना करना पड़ता है। विशेषज्ञों के अनुसार रसोई में खुली आग जलाना प्रति घंटे चार सौ सिगरेट जलाने के समान है। जिसका सरल भाषा में अर्थ हुआ, कि बिना किसी प्रकार का नशा किए ही हमारे देश की अनेक महिलाएं प्रतिदिन चार सौ सिगरेट जितना धुएं को ग्रहण कर रही है। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि चूल्हें पर खाना पकाने से समाज और देश को जान-माल दोनों की क्षति उठानी पड़ती है।  विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के मुताबिक भारत में प्रतिवर्ष 5 लाख लोगों की मृत्यु अस्वच्छ जीवाश्म ईंधन के कारण होती है। तो प्रधानमंत्री की उज्ज्वला योजना समाज की महिलाओं को नया जीवन देने से कमतर कतई नहीं मानी जा सकती है। 1 मई 2016 को उत्तर प्रदेश के बलिया से शुरू हुई प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के क़ामयाबी के गहरे निशान अब ज़मीनी स्तर पर दिख रहे हैं।

सोशियो इकोनॉमी कास्ट सेन्सस एक तरीक़े का आर्थिक आधार पर होने वाला सर्वें है। जिसके माध्यम से देश में जातिगत विभिन्नता का पता लगाया जाता है। ऐसे में स्थिति विकट जब मालूम पड़ती है। जब यह पता चलता है, कि आज़ादी के बाद सत्तर सालों के दरमियान भी जातिगत असमानता की खाई बढ़ती गई। यह भी ऐसी स्थिति में जब अधिकतर राजनीतिक दल किसी न किसी जाति के मसीहा अपने आप को साबित करने में लगे रहें। अगर देश में आर्थिक असमानता घर कर चुकी है। तो ऐसे में हम उम्मीद करें, कि पिछड़े वर्ग के लोग गैस कनेक्शन अपने पैसे से ले सकें। तो यह संभव नहीं। ऐसे मे सरकार की उज्ज्वला योजना इन लोगों के लिए मददगार साबित हो रहीं है। जो बात सरकार के आंकड़े भी कहते हैं, कि गरीबों और पिछड़ों तक घरेलू रसोई गैस कनेक्शन पहुंचाने के उद्देश्य से शुरू की गई उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों में 44 फीसदी अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग से हैं। तो यह सरकार की बड़ी कामयाबी है। जो समाज की मुख्य धारा से कटे हुए लोगों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के साथ उन्हें आधुनिक जीवनशैली से जोड़ने के साथ बीमारी से निज़ात दिलाने को प्रयासरत दिख रहीं है। उज्ज्वला की सफलता की दास्तां इसी बात से लगाई जा सकती है, कि सिर्फ़ पांच राज्यों में ही 2 करोड़ कनेक्शन बांटे जा चुके हैं। जिसमें उत्तर प्रदेश गैस कनेक्शन बांटने में सबसे आगे है। जहाँ पर लगभग 63 लाख 80 हजार कनेक्शन दिए जा चुके हैं। पश्चिम बंगाल में 48 लाख 87 हजार, बिहार में 46 लाख 67 हजार, मध्य प्रदेश में 31 लाख 37 हजार और राजस्थान में 25 लाख 13 हजार कनेक्शन महिलाओं की ज़िंदगी में खुशियां घोल रहें हैं। सरकार ने अगर उज्ज्वला योजना का विस्तार करते हुए इसकी पहुँच अनुसूचित जाति एवं जनजाति और अति पिछड़ा वर्ग के साथ प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना और अंत्योदय अन्न योजना के सभी लाभार्थियों, जंगलों और द्वीपों में रहने वालों तथा पूर्वोत्तर के चाय बगानों में काम करने वाले सभी परिवारों तक पहुँचाने का निर्णय लिया है। इसके अलावा उज्जवला योजना के लक्ष्य को 5 करोड़ कनेक्शन से बढ़ाकर आठ करोड़ कनेक्शन कर दिया गया है। तो यह एक सकारात्मक और सामाजिक उत्थान के लिए लिया गया सार्थक फैसला है।

महेश तिवारी

मैं पेशे से एक स्वतंत्र लेखक हूँ मेरे लेख देश के प्रतिष्ठित अखबारों में छपते रहते हैं। लेखन- समसामयिक विषयों के साथ अन्य सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर संपर्क सूत्र--9457560896