कविता

बूढ़ी आँखें…..

टिकी रहती है दरवाजे पर
वो दो जोड़ी आँखें….
टकटकी लगाए देखती है
हर आने जाने वाले को
करती है इंतजार मेरे आने का
वो दो जोड़ी आँखें…..
बड़ी प्यारी है
ममता भरी है
स्नेह से ओत-प्रोत
थोड़ी बूढ़ी हो चली है
वो दो जोड़ी आँखें….
सपने संजोए थे
जिंदगी में खोए थे
बोए थे बीज
मेरे होने का
वो दो जोड़ी आँखें….
बड़ी खुशियाँ भरी थी
उल्लासित थी
उमंगित थी
मेरे होने पर
वो दो जोड़ी आंखें….
बड़ा लाड़ था
बड़ा प्यार था
बड़ी असमंजस्य थी
बड़ी मुश्किलों से
पाला था मुझको
वो दो जोड़ी आँखें….
थाम के उंगली
बढ़ाया था पहला कदम
लड़खड़ाया था, गिरा था
सम्भाला था उसने
वो दो जोड़ी आँखें….
लिया था काँधे का सहारा
बंधा था डोर जीवन का
जिसने बहुत कुछ छोड़ा
बहुत कुछ सहा
जिया जिंदगी मेरे लिए
वो दो जोड़ी आँखें……
जिसने किया होगा रतजगा
ख्वाब देंखे होंगे रात भर
बेचैन परेशान रही होंगी
भूखी भी रही होंगी
वो दो जोड़ी आँखें….
बड़ी मेहनत से
इंसान बनाया मुझको
पढ़ाया काबिल बनाया
जिंदगी के रास्ते दिखाए मुझको
वो दो जोड़ी आंखे……
सालभर निहारती है
दरवाजे पर लगी रहती टकटकी
इंतजार में घण्टों बेचैन रहती है
मेरे आने की उम्मीद में
सपने भरे हुए
वो दो जोड़ी आँखें……
पूरे हुए सपने शायद
आज मैं भी पापा हूं
परिवार बसाया हूं
वही चक्र दोहराया हूँ
धन्य हैं
वो दो जोड़ी आँखें…..

*बबली सिन्हा

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