सामाजिक

ऐसे तो कौन विश्वास करेगा धर्म पर?

एक बार फिर दिल्ली के फतेहपुर बेरी इलाके में मशहूर शनिधाम मंदिर के संस्थापक दाती महाराज के खिलाफ उनकी शिष्या ने रेप का सनसनीखेज आरोप लगाया है। दिल्ली पुलिस ने पीड़िता की शिकायत पर दुष्कर्म का केस दर्ज किया गया है। यदि पैसे तथा पहुँच का खेल न चला तो एक और बाबा का सलाखों के पीछे जाना तय माना जा रहा है। हर बार कथित बाबाओं का एक नया मामला उजागर होता है जिसके बाद धर्म धरा में बवाल मचता है। स्थिति कुछ दिन बाद सामान्य हो जाती है। पुराने बाबा की जगह नया बाबा आ जाता है और भक्ति का कारोबार ज्यों का त्यों चलता रहता है। भक्त भक्ति-भाव में डूबकर अपने-अपने बाबाओं के कसीदे पढ़ते रहते हैं।

चित्र साभार गूगल

आसाराम, रामरहीम के मामले अभी ठंडे भी नहीं हुए कि एक बार फिर बाबा की इस करतूत से पूरी संत बिरादरी कलंकित हो गई, हालाँकि सालाना तीन चार बड़े बाबा और छमाही तिमाही कुछ छोटे बाबा दसवें पंद्रहवें दिन छोटे-मोटे बाबाओं पुजारियों का पकडे़ जाना आम बात हो चुकी है। ये बात अकेले किसी एक धर्म, पंथ या मजहब की नहीं है। कथित धर्मिक गुरुओं के पकड़े जाने की खबर आये दिन अखबारों से मिलती रहती है। ऐसी खबरों के सार्वजनिक होने के बाद देश और धर्म कई बार जगहंसाई झेल चुका है।

ऐसा लगता है जैसे आम भारतीय को जीने के लिए धर्म और राजनीति की खुराक चाहिए। जिसके लिए लोग आज ऐसे मध्यस्थों को अपनी जरूरत समझे बैठे हैं यानि कि धर्म को ऐसे बिचैलियों की जरूरत इसलिए आन पड़ी है ताकि वो आम लोगों और भगवान और भक्तों के बीच पुल का काम कर सकें। शायद ही कोई धर्म इन प्रवृत्तियों से परे रह पाया है। धर्म के नाम पर व्यापार करने और पैसा ऐंठने के आरोप तो बीते जमाने की बात हो गए। अब तो प्रतिष्ठित गद्दियों पर बैठे, मठों और डेरों के मालिकों का चरित्र भी इन छींटों से नहीं बच पाया। ऐसे में आस्तिक मन पूछता है कि किस देहरी पर शीश झुकाएं और किससे अपना पीछा छुड़ाएं।

आखिर क्यों अचानक से ये धार्मिक शिक्षाओं, भक्ति भावना से भरे मन, वासना के कुण्ड बनते जा रहे हैं। इन्हीं वासनाओं से बचने के लिए तो लोग इनकी शरण में जाते रहे हैं लेकिन अब ये देहरी भी सुरक्षित नहीं है। एक तो पहले से देश में धर्मनिरपेक्षता की महामारी फैल रही है जिसमें सभी धर्मगुरुओं को नीचा दिखाए जाने का कार्य चल रहा है। ऐसे में धर्मगुरुओं को अपने कार्यों को लेकर नए सिरे से आत्म समीक्षा इसलिए जरूरी कि वे जागरूकता और आधुनिकता के इस माहौल में धार्मिकता को मजबूत कर सकते है।

कोई महर्षि विश्वामित्र और मेनका के पौराणिक प्रसंग तथा अन्य संन्यासियों के प्रेम में पड़ने की बहुत-सी पौराणिक कथाएं लेकर स्वयं का बचाव करते दिखता है। कहते हैं हमें जबरन फंसाया जा रहा है। जबकि देश में ऐसे उदहारण है जो विश्व के धर्म जगत के किसी अन्य कोने में नहीं मिलेंगे। जब मथुरा में महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती अंधविश्वास पर हमला करते तथा उनके विरोधी हारते थे। तब वे विरोधी एक महिला के पास गए, उससे बोले, ‘‘तुझे बहुत से आभूषण देंगे, तू दयानन्द के पास जाकर शोर मचा देना कि इसने मुझे छेड़ा है।’’ हम निकट ही छिपे रहेंगे, बाहर निकलकर डंडे से उसे अधमरा कर देंगे। महिला ने ये बात मान ली। अपने आप को खूब सजाकर वहाँ गई, जहाँ स्वामी जी बैठे थे, ध्यान में मग्न थे, स्वामी दयानन्द ने आँखें खोली, बोले, ‘‘माँ तुम कौन हो?’’ माँ शब्द सुनते ही उसकी आँखें डबडबा गयीं और सिसकते हुए बोली माफी मांगने आई हूँ महात्मा जी। इन आभूषणों ने मुझे अँधा कर दिया था और रोते हुए उसने सारी कथा महर्षि को सुनाई।

इसी अन्तराल में दूसरा उदहारण स्वामी विवेकानंद जी का भी है जब एक विदेशी महिला ने उनसे शादी करने का प्रस्ताव रखते हुए कहा था कि मुझे आपके जैसा ही एक पुत्र चाहिए जो पूरी दुनिया में मेरा नाम रोशन करे और वो केवल आपसे शादी करके ही मिल सकता है, तब विवेकानंद ने मुस्कुराते हुए कहा था आप मुझे ही अपना पुत्र मान लीजिये और आप मेरी माँ बन जाइए ऐसे में आपको मेरे जैसा पुत्र भी मिल जाएगा और मुझे अपना ब्रह्मचर्य भी नहीं तोड़ना पड़ेगा।

लेकिन आज के अधिकांश साधू संतो की जीवन शैली इस सबसे इतर चुकी है, धर्म की आड़ में वासना की पूर्ति, भक्तों की संख्या बढ़ाने, अपने आश्रम और मठों को भव्य बनाने में लगे पड़े हुए हैं। इन तथाकथित बाबाओं के व्यवहार को देखकर दुख होता है कि इन्होंने धर्म का महासत्यानाश कर दिया है। कोई इन्हें रोकने वाला नहीं है, क्योंकि भक्तों की बड़ी फौज इनके पास है। इनकी अजीब तरह की हरकतों को देखकर लगता है कि कौन विश्वास करेगा धर्म पर?

हाल के वर्षों में जिस तरह से कई छोटे-बड़े, असली-नकली यानी हर किस्म के बाबा विवादों में घिरे हैं, उससे खटका होने लगा है कि कहीं हम अधर्मयुग की देहरी पर पांव तो नहीं रख रहे हैं। जमीन पर अवैध कब्जा, हत्या, अप्राकृतिक यौन संबंध से लेकर वैश्यावृत्ति का रैकेट चलाने सरीखे गंभीर आरोप धर्म गुरुओं पर लग चुके हैं। इसके बावजूद भी जनता हर किसी को अपना गुरु मानकर उससे दीक्षा लेकर उसका बड़ा-सा फोटो घर में लगाकर उसकी पूजा करती दिख रही है। अपने महापुरुषों के फोटो भले ही त्योहारों में साफ करते हों लेकिन अपने तथाकथित गुरु का लाकेट गले में पहनते हैं। यह धर्म का अपमान और पतन ही माना जाएगा। जब समाज में एक आम आदमी रेप जैसे कृत्य को अंजाम देता है तब समाज की शिक्षा पर सवाल खड़ें होते हैं लेकिन जब धर्म से जुड़े लोग ऐसे कार्य करें तो क्या धर्म बदनाम नहीं होता, धर्म की शिक्षा बदनाम नहीं होती? इसे समझने का प्रयास कीजिये, नुकसान किसका है और सुधार की जिम्मेदारी किसकी है?

— राजीव चौधरी 

राजीव चौधरी

स्वतन्त्र लेखन के साथ उपन्यास लिखना, दैनिक जागरण, नवभारत टाइम्स के लिए ब्लॉग लिखना