मुक्तक/दोहा

“मुक्तक”

छंद–दिग्पाल (मापनी युक्त) मापनी -221 2122 221 2122

जब गीत मीत गाए, मन काग बोल भाए।

विरहन बनी हूँ सखियाँ, जीय मोर डोल जाए।

साजन कहाँ छुपे हो, ले फाग रंग अबिरा-

ऋतुराज बौर महके, मधुमास घोल जाए॥-1

आओ न सजन मेरे, कोयल कसक रही है।

पीत सरसो फुलाए, फलियाँ लटक रही है।

महुवा मलक रहें हैं, भौंरा मचल रहें हैं-

होली हवा चली है, पुरुवा पटक रही है॥-2

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ