कविता

फिश-सेलफिश

व्यंग्य कविता

एक बेबी फिश ने 
ममी फिश से
पूछी एक बात
बोली, ”ममी,
एक छोटी-सी है
मेरी तहकीकात
आप दिन-रात मुझे
पानी में ही घुमाती-फिराती हो
कभी जमीन पर
क्यों नहीं ले जाती हो?
क्या जमीन पर रहने की
नहीं है हमारी औकात?”
ममी फिश प्यार से बोली,
”तुम्हारा इरादा है नेक
लेकिन 
हमारे बड़े-बुजुर्गों का
तजुर्बा है एक
जमीन पर नहीं रह सकती है फिश
वहां रह सकते हैं सेलफिश
केवल सेलफिश
केवल सेलफिश.”

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “फिश-सेलफिश

  • लीला तिवानी

    बेबी फिश और ममी फिश के वार्तालाप से यह बात उभरकर आती है, फिश- पानी में सेलफिश जमीन पर रहते हैं. फिश सेलफिश को अच्छी तरह जानती-पहचानती है.

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