प्रीत
नेह लगाकर भूल गए क्यों पास बुलाकर दूर गए क्यों। मैं तो तुम्हरी प्रीत बाबरी , वंशी बजाकर छोड़ गए
Read Moreकाफ़िया- आरों, रदीफ़- पर जी करता है लिख डालूँ कुछ नए बंद बीमारों पर जिसने जीवन दिया पिता बन उनके
Read Moreजनक नंदिनी सीता, चाहत चाह पिता की, जगत रक्षिणी न्यारी, वैदेही सुकुमारी। धन्य सु-अवतरण, मिथिला रजत कण, कुंभ हल धार
Read Moreजेठ का वह भी अधिक जेठ का मास, शिमला में जलसंकट, बारिश के इंतजार में उत्तराखंड के दहकते जंगल, ताल-तलैया
Read Moreमुद्दा इससे गंभीर बने ,पूरा भारत कश्मीर बने । दिल्ली ! सत्ता का मोह त्याग ! है वक्त अभी
Read Moreकदकाठी मजबूत हो, या हो कोमल देह। जीवन के हर मोड़ पर, मिले पिता का नेह। मिले पिता का नेह,
Read Moreटिकी रहती है दरवाजे पर वो दो जोड़ी आँखें…. टकटकी लगाए देखती है हर आने जाने वाले को करती है
Read More“पिता” माथे पर न दिखने वाली शिकन मन में न दिखने वाली दर्द भरी चुभन हर पिता की अनकही निशानी
Read Moreआज मन कुछ उदास था..अन्यमनस्कता में मन काम के प्रति एकाग्र नहीं हो पा रहा था..मन को कुरेदा..आखिर ऐसा क्यों?
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