कविता

चाँद की चमक

चाँद कहता है मुझसे
आदमी क्या अनोखा जीव है
उलझन खुद पैदा करता है
फिर न सोता है, और मुझसे बाते करता है
रात भर मेरी चमक में अपने को निहारता है
मेरी आगोश में आकर अपनी उलझन भूल जाता है
चाँद अपनी चांदनी के साथ हर गम भूल जाता है
चाँद पूरी रात सबको मीठी नींद सुलाता है
स्वप्न में लोग चाँद की चमक देखते है
और देखते है हर दुःख सुख को अपने
और उन दुखो और सुखो को सुबह भूल कर
फिर चाँद का इंतज़ार करते है
की चाँद आये और हम अपने दुःख सुख
साथ बाटे और उसकी चांदनी में सब दुखो,
को भूलकर मीठी नींद में सो जाये
और खो जाये चाँद की चमक में

गरिमा

गरिमा लखनवी

दयानंद कन्या इंटर कालेज महानगर लखनऊ में कंप्यूटर शिक्षक शौक कवितायेँ और लेख लिखना मोबाइल नो. 9889989384